बलवंत सिंह की श्रेष्ट कहानियाँ | Balavant Sinh Kii Shresht Kahaaniyaa

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Balavant Sinh Kii Shresht Kahaaniyaa by जानकीप्रसाद - Jankiprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बलवंत सिंह की कला 17 जबान बयान नहीं कर सकती । में तो उसे देखकर हक्का-बकका रह गया । सोचा न मालूम यह परी है सचमुच की या किसी चुड़ैल ने परी का रूप धारा है। उसने मेरे देखते-देखते चूल्हे में लकड़ियां डालीं आग भभक उठी फिर उसने सिर से दुपट्टा उतार दिया उसके स्याह बाल दिखाई देने लगे। उसने मेंटों को खोला और फिर सारी चोटी खोलकर बाल बिखरा दिये और रुई की सदरी के बटन खोलने लगी। सदरी के नीचे एक मखमली वास्कट पहन रखी थी। उसके बटन खोलकर उसे भी उतार दिया और जब उसने कमीज के बटन भी खोलने शुरू किये तो मेरा दिल धड़कने लगा......वाह गुरु वाह गुरु महंगा सिंह पहले तो गाय को छूकर देखता है कि कहीं भूत-प्रेत का मामला तो नहीं फिर हिम्मत करके औरत को पकड़ लेता है। वह वहशियों की तरह काटती है। मुकाबला करती है । बिल आखिर हॉपने लगती है। वह बताती है कि कई बरस पहले उसकी शादी एक बड़े साहूकार से हुई थी लेकिन अब तक औलाद के लिए तरस रही थी । किसी बूढ़ी औरत ने जंगल में जाकर यह सब कुछ करने को कहा । महंगा सिंह कहता है कि औलाद हासिल करने का यह तरीका नहीं और उसे अपनी तरफ खींच लेता है। (यहां रात के गहन अंधकार में बलवंत सिंह ने जंगल और कब्रिस्तान का भयानक दृश्य निर्मित करके ऐसी घटना-स्थितियों का संयोजन किया है जो (ज0०1८५५०८ की सौंदर्यात्मक अपेक्षाओं के अनुरूप हैं और मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। लेकिन महंगा सिंह केवल किस्सागों महंगा सिंह नहीं बल्कि इसमें मनुष्य की आदिम छवि दिखाई देती हैं वह जमीन का आदमी है जिसकी समूची संवेदनाएं मिट्टी की जड़ों से फूटती हैं । लम्बा-चौड़ा कड़ील शक्तिशाली पौरुष का प्रतीक अपनी आदिम मनोवृत्ति से जुड़ा हुआ--औरत जब सदरी उतारकर स्याह बाल खोल देती है तो रात के अंधेरे जंगल की आग में रूप-सौंदर्य का आश्चर्यकारी चमत्कार प्रतीत होती है। घासना की तृप्ति के बाद जब दोनों बिछड़ते हैं तो महंगा सिंह उसका कंठा पकड़ लेता है। वह हैरान होकर पूछती है तुम्हारा मतलब महंगा सिंह कहता है इससे पहले तो मेरा कोई मतलब नहीं था | मेरा असल मतलब यही है । अकेली जानकर मेरे जेवरों पर हाथ मार रहे हो चलो गांव के जितने आदमियों के सामने कहो तुम्हारा ज़ेवर उतार लूं। औरत सारे जेवर उतार कर महंगा सिंह के हवाले कर देती है। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि एक की जरूरत संतान यानी ऐंद्रिकता दूसरे की धनार्जन--दोनों सामाजिक सभ्यता एवं संस्कृति की कृत्रिमता से उन्मुक्त अपने-अपने तत्वों की सच्चाई से उत्पन्न हैं और इस सच्चाई की पूर्णता का मूर्त रूप हैं ।




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