जीवन की राहों पर | Jeevan Ki Rahoan Par

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रस्त हम वहीं खड़े-खड़े केवल उसे देखते रहे मुह से एक भी शब्द नहीं लिकला। श्ाखिर साशा भाग कर रसोई से बाहर गया श्रौर मै ख़िडकी के पास रोशनी में क्कितव्यविमूद़॒ सा खडा रहा। मालिक श्राया चिन्ताप्रस्त भाव से झुका उसके चेहरे का स्पश्ञ किया श्रौर बोला झरे यह तो सचमुच मर गई। यह फंसे हुआ? कोने में रखी हुई चमत्कारी सन्त निकोला की छोटी सी प्रतिमा के सामने शुकते हुए मालिक ने तुरत सलीब का चिहू बनाया श्ौर प्राथना युरी करने के बाद दरवाजे को श्रोर मूह करके चिल्लाया काशीरिन भागकर जाशो श्र पुलिस को ख़बर करो पुलिस बाला श्राया इघर उधर कुछ खटर-पटर करने के बाद उसने बख्यीश श्रपनी जेब में डाली श्रौर चला गया। इसके शीघ्र बाद ही मूर्दा ढोने वाले एक ढेले को भ्रपने साथ लिए वह लौटा। सिर श्रौर पाव पकडकर उदह्दोने बावचिन को उठाया श्रीर उसे बाहर ले गए। मालिक की पत्नी ने दरवासशे से झ्ञाककर मुझ से कहा फदा साफ कर डाल 1 आर मालिक ने कहा यह भी श्रच्छा हुआ वि घह साझ के समय ही मरी. सेरी समझ से नहीं श्राया कि इसमे कया श्रच्छाई थी। जब हम सोने के लिए बिस्तर पर गए तो साशा बहुत ही मद्ता से बोला लम्प ने बुझाना क्यो डर लगता है? उसने झ्पना सिर कम्बल से ढक लिया श्रोर बहुत देर तक चुपचाप पडा रहा। रात भी एकदम चुप श्रीर निस्तब्थ थी मानो वहूं भी कान लगाकर कुछ सुनना चाहती हो किसी चीज की प्रतीक्षा में हो। श्रौर मुझे ऐसा लग रहा था मानो झ्ंगले ही क्षण घटा बजने लगेगा श्रौर नगर के लोग भय से झाप्रात होकर इघर उधर भागना श्ौर चित्लादना शुरू कर दंग । साथा ने कम्बल से झपना सिर बाहर निकालकर श्रपनी थूथनी की एक झलक दिखाते हुए धोमे स्वर मे कहा चल धलावघर पर चलकर दोनो एक साथ सोए ? वहा सो बहुत यम होगा




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