कांग्रेस का इतिहास | Kangres Ka Itihas

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Kangres Ka Itihas  by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सा पी हि ( रे अन्तरात्मा के आदेश आदि सम्बन्ची स्वतत्त्रता के मौलिक अधिकारों की घोषणा कर दी गई है। यह भी निर्दिष्ट कर दिया गया है कि कल-कारखानो में काम करनेवालो के लिए काम की स्वास्थ्यप्रद परिस्थिति काम के मर्यादित घण्टे आपसी कगडो के फैसले के लिए उपयुक्त सगठन और वुढापे बीमारी व बेकारी के आर्थिक सकटो से सरक्षण तथा मजदुर-सघ बनाने के उनके अधिकार को कायम रखने के रूप से उनके हितो का खयाल रवखा जायगा । किसानो को इसने आइवासन दिया है कि यह छगान-मालगुजारी में उपयुक्त कमी कराकर और अनुत्यादक जमीनो की छगान-मालगुजारी माफ कराकर तथा छोटी-छोटी जमीनो के मालिकों को उस कमी के कारण जो चुकसान होगा उसके हिसाव से उचित और न्याय्य छूट की सहायता देकर यह उनके खेती-सम्बन्धी भार को हरूका करेगी । खेंती-बाडी से होनेवाली भामदनी पर उसके एक उचित न्यूनतम परिमाण से ऊपर इसने क्रमागत कर लगाने की भी व्यवस्था की है । साथ ही एक निदि्वित रकम से अधिक आमदनी- वाली सम्पत्ति पर उत्तरोत्तर बढता जानेवाला विरासत का कर छगाने फौजी व मुल्की शासन के खर्चे मे भारी कमी करने और सरकारी कर्मचारियों की तनखवाह् ४५००) महीने से ज्यादा न रखने के लिए कहा है । इसके अलावा एक आर्थिक और सामाजिक कार्येक्रम भी प्रस्तुत किया गया है जिसमें विदेशी कपडे का बद्धिष्कार देशी उद्योग-घन्धो का सरक्षण दराव तथा अन्य नशीली चीजों का निषेध बडे-वड़े उद्योगो पर सरकारी नियत्रण काइतकारो का कर्जदारी से उद्धार मुद्रा और विनिमय की नीति का देवा के हित की दृष्टि से संचालन गौर राप्ट्र-रक्षा के लिए नागरिकों को सैनिक शिक्षण देने का निर्देदा है । काग्रेस के अन्तिम अधिवेशन में जोकि अक्तूबर १९३४ मे वस्वई मे हुआ था कौसिल-प्रवेश की नीति को स्वीकार कर लिया गया है शर देश के सामनें स्वनात्मक कार्यक्रम रक्खा गया है जिसमें हाथ की कताई-बुनाई को श्रोत्साइन एव पुर्जीवन देने उपयोगी ग्रामीण तथा अन्य छोटी दस्तकारियों ( गृह-उद्योगो ) की उन्नति करने आर्थिक शिक्षणात्मक सामाजिक एवं स्वास्थ्य-विज्ञान की दृष्टि से ग्रामीण-जीवन का पुनर्निर्माण करने अस्पृद्यता का नाश करने अन्तर्जातीय एकता की वृद्धि करने सम्पूर्ण मद्थ-निषेघ राष्ट्रीय-दिक्षा वयस्क स्त्री-पुरुषों में उपयोगी ज्ञान का प्रसार करने कल-कारखानों में काम करनेवाले मजदूरों व खेती करनेवाले किसानो का सगठन करने सौर काग्रेस-संगठन को मजबूत बनाने की वाते भी हूँ । कॉप्रेस-विधान का सशोघन करके नये विधान में प्रतिनिधियों की सख्या घटाकर




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