श्री प्राणनाथ जी और उनका साहित्य | Shri Pran Nath Jee Aur Unka Sahitya

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Shri Pran Nath Jee Aur Unka Sahitya by डॉ. राजबाला सिडाना - Dr. Rajbala Sidana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(छ) हरिद्वार में विभिन्‍न मतावलस्वियों से शास्त्राथ करते समय प्राणनाथजी ने उन्हें अपनी साधना-पद्धति की जो रूपरेखा बतायी थी जिसका उल्लेख बीतक-साइदित्य में सिलता है उसके आधार पर तथा प्रकादा ग्रन्थ में दिये गये एक सो. आएठ पक्षों के विवरण विभिन्‍न अन्थों में मिले साधना-सम्बन्धी संक्षिप्त उब्लेखों तथा समाज मैं प्रचछित साधना के तरीकों के आधार पर प्राणनाथजी की साधना का सुनिश्चित स्वरूप निर्धारित किया गया है । तीसरे अध्याय में भावालुभूति और अभिव्यक्ति-भाषा अल कृति उलरबांखियां शीतितत्व आदि का चिवेयन है । परिदिष्ट भाग में वुद्धनिष्कल कावतार तथा इमाम मेंहदी के श्रगट होने की तिथियों का उव्लेख समन्ध कीरन्तन और क्यामतनामा ग्रन्थ में उल्लिखित तिथियों के आधार पर किया गया है । इसके अतिरिक्त इसमें केले डर फार्म ला आयाय परम्परा चित्र और सहायक ग्रन्थों की सूची भी दी गयी है । प्रणामी साहित्य (प्राणनाथजी की रचनाओं) का मूल्यांकन करने पर शात होता है कि भाषा धर्म साहित्य तथा संस्कृति की दृष्टि से यह हिन्दी-सादित्य की पक अमूल्य गुप्त निधि है. जिसके प्रकादा में आने से केबल प्रणामियों को प्राणनाथजी की अंतिम निवास-भूमि वुन्देठखण्ड को और उनकी जन्मभूमि गुजरात को ही नहीं वरन भाषाचिज्ञों सोहित्यकारों समस्त देवा तथा सेदभाव-रहित समाज की स्थापना चाहने- बाली मानव जाति को भी गये होगा और वे इससे छाभ उठा सकेंगे । प्राणनाथजी की निम्न चौपाई से प्रेरणा पाकर ही इस गुरुतर काय को डाथ लगाया गया है - खोज बड़ी संसार रे तुम खोजो साधो खोज बड़ी संसार । खोजत खोजत सत्गुरुू पाइए सत्णुरु संग कतार ॥। इस प्रबन्ध लेखन में जो. भी सफलता मिली है उसका समस्त श्रेय थद्धेय गुरुवर डा० प्रभात को जिनके निदान में यह काय किया है तथा श्री श्री १०८ आचयाय श्री घर्सदास जी को है जिन्हों ने शोध काल में समय समय पर सामग्री दे कर सहायता की है और जिन्होंने इसके शीघ्राति शीघ्र प्रकादान के लिए खिफ हमें प्रेरित ही नहीं किया चरन्‌ इस का प्रकादान कराके धर्म साइित्य और समाज सेवा का जो




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