शरीर और शरीर - रक्षा | Sharir Or Sharir-raksha

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Sharir Or Sharir-raksha by चन्द्रमौलि सुकुल - Chandramauli Sukul

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरोर घ्लार शरीर-रना । न १--कन्ये की हृट्टीं । र-न्वाटु की हृट्डी । दे--्थेंगूदे की शोर की हड्डी । शनादेाटी धंगुली की 'सारवाली हड्डी । कढ़ाई की हड्ियां । इ--इथेली की हष्टिया । उ--शंगुदियों की हृड्टिया । हाथ की इड्डियाँ । जा भाग कोदनी फे ऊपर होता है उसमे एक लम्यी गाल डुड़ी हावी हैं, इसे चाह की इड़ी (रिपतएल पे कहते है | इसका ऊपरी सिरा कन्पेवाली छड़ों से मिलता काइनी से नीचे कलाई तक दे! इियाँ होती हैं । एक (१ ताएएस शरैंगूदे की झार घार दूसरों (000 छाटों झेगुली को श्रार । इन दानों के ऊपरी सिरे चाह को इड़ी से जुटते है घ्ार नोचेवाले सिरे कलाई फी हृड्ियों से | कलाई में झाठ इड़ियाँ (0011 9006५ होतों ईं । वे इस तरद जुड़ी ई कि दाथ श्ागे पीछे पार दाहिने वायें मु सक॑ श्रार चाहर से ज़ोर लगने पर उनमें चाट न घावे । कलाई से पांच दृड़ियाँ इघेली में श्राती हैं, इन्दों में श्रैरु- लिया की हदुट्टियां जुडी रदती हैं । इर घैंसुली में ३ घ्ौर भेयूठे दृड़ियाँ द्वोती हैं । दाथ धार कलाई में बहुत सी दड़ियों के होने से हाघ का दर एक भाग मु सकता' हैं जिससे संकड़ों तर क॑ काम होते टू । श्रैंगुलियों की छाटाई बड़ाई वस्तुओं के पकड़ने ्ार उठाने में सद्दायता देती डे । इस प्रकार दाध में ३० दृड़ियाँ देती दें शर्थात्त १ चाह




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