रचना - पीयूष | Rachana Piyush

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Rachana Piyush by चन्द्रमौलि सुकुल - Chandramauli Sukul

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना र अभ्यास की। शक्ति का काम अपनी बुद्धि श्रौर विद्या पर प्रवलभ्वबित है, परन्तु भ्रभ्यास के सिर नियम श्रौर उदाहरण ज्हरी होति ह । इस पुस्तक मे लिखि रचना का वैन हेग; परन्तु यह भी उश्चोग किया जायगा कि भाषित रचना सुधारने का कोई अवसर हाथ से न खेया जाय | रचना में दे। बाते' परम प्रधान द्वोती हैं--( १) भाषा, ( २ ) भाव । भाषा के श्रन्तर्गत अक्षर, शब्द, वाक्य हें; इस्- लिए रचना में अक्षरों, शब्शें, तथा वाकयों का विचार ছলনা चाहिए; किसी मं भी श्रशुद्धि हे।ने से भाषा दूषित हो जाती है। भाषा की शुद्धि तथा उसके नियमें। का वर्णन व्याकरण में होता है, ओऔ।र हम यद्द बात पहले से माने लेते हैं कि जिन विद्याथियों का रचना सिद्वाने के लिए यह पुस्तक लिखी जाती है वे हिन्दी भाषा का खाधारण व्याकरण जानते हैं । भाव का महत्व भाषा से भी अधिक है। विचार करने से मालूम होगा कि भाव के प्रकट करने ही फे लिए भाषा है। भाषा कितनी ही सुन्दर दो, परन्तु यदि उससे भाव ठीक ठीक प्रकट नहीं होता ते वद्द व्यथे है। भाषा यदि कुड दूषित भी दो, परन्तु भाव साफ दिखलाई देता हे ते भाषा জী दोष को लोग प्राय: क्षमा कर देते हैं। सबसे अच्छी बात ते यह है कि भाषा श्र भाव दोनों सुन्दर हें; शरीर पर कपड़े-लत्ते दोनों साफ-सुधरे दें। । भाषा या भाव में किसी प्रकार का दोष होने से सुननेवाते




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