फणीश्वरनाथ रेणु - चुनी हुईं रचनाएँ | fanishvarnath Renu - Chunee Huee Rachanayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपरूप-रूपों को पहचान हिंदी कथा-साहित्य मे रेणु की पहचान एक गहरे लोक-संपुक्त कथाकार के रूप में है ।वे साधारण जन की आत्मा के सजग और मर्मो शिल्पी है । लोक-संस्कृति की जितनी गहरी पकड़ रेणु के कथा-साहित्य मे है अन्यत्र दुर्लभ है। अपने कथा-साहित्य की सुदृढ़ भित्ति उन्होंने लोक-भाषा की नीव पर खड़ी की है इसीलिए वह इतनी टिकाऊ भौर मन को छूने वाली है । जो ग्राम-भाषा पढ़ें-लिखे शहराती -ोगों को गंवारू और गलीज लगती है रेणु के कथा -साहित्य मे उसके शब्द आकर मोतियों की तरह चमकते है । भाषा का खड़ी बोली का ढाँचा होने पर भी उनकी भाषा का पूरा मिजाज प्रामीण है जिसे कभी अआँचलिक कहने का पुरजोर चलन था । पर इस आँचलिक शब्द का रेणु ने पुरजोर विरोध भीकिया था । वे आँचलिकता को लेकर चल रहे बहस को बेमानी समझते थे । वे उपन्यास को सि्फ॑ उपन्यास और कहानी को सिफं कहानी मानने के पक्षपाती थे-- आँचलिक आदि किसी विशेषण जोड़ने के नहीं । यद्यपि उनके अधिकांश कथा- साहित्य को आँचलिक कहा गया है । रेणु ने भला आँचल की भी रचना भारत के एक पिछड़े गाँव को प्रतीक मानकर की थी जेसे प्र मचद ने गोदान की रचना की थी पर उनके उपन्यास और कहानियों को आँचलिक कहकर एक क्षेत्र- विशेष की सीमा में बाँध देने का प्रयास किया गया जसे अन्य क्षेत्रो के जीवन से उनकी समस्याओं से उनका कुछ लेना-देना ही न हो । रेणु न इसका विरोध किया था। रेणु प्रेमचंद के बाद प्रामीण जीवन के सबसे प्रमुख कथाकार है । इनको प्रमुखता का सबसे बड़ा कारण है--प्रामीण जीवन को अपने कथा-क्षेत्र का आधार बनाते हुए भी प्रेमचंद के कथा-शिल्व और रचना-दुष्टि से अपने को विल- गाना । जबकि उनकी पीढ़ी के अन्य कथाकार जो ग्रामीण जीवन की कहानियाँ लिख रहे थे प्रेमचंद के हू-ब-हू नक्शे-कदम पर चले । इन्होंने प्रेमचंद के कथा- साहित्य की तमाम विशेषताओं को कमजोरियों सहित अपनाया । किसी भी बड़े [इस ]




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