भारत में ग्रामपंचायतों के पच्चीस वर्ष | Bharat Main Grampanchayato Ke Pacchis Varsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(दी कार्य पद्धति, स्वभाव में भी फर्क श्राता गया । मराठा युग में यह परिवर्तन साफ- तौर पर देख सकते हैं । इस समय ग्राम के मुखिया को पाटिल कहते थे । यह ग्राम व्यवस्था, कर वसुली एवं न्याय के लिए जिम्मेदार था । हम देखते हूं कि वाद के युगों में ग्राम का मुखिया का काम सीमित हो गया । प्राचीन व्यवस्था का ह्लास :--मुगल काल की मुख्य चिन्ता जमीन भौर उसकी लगान थी । भूमि राजकीय खजाना मरने का मुख्य स्रोत थी । इस कारण मुगल साम्राज्य ने ऐसे कई प्रयास किये जिससे राजस्व की वृद्धि हो । झकवर ने भूमि व्यवस्था में पर्याप्त परिवर्तन किया । उसके साथ-साथ शासक जाति को श्रघिक सुविधा मिले इसका भी प्रयास किया गया । यही कारण है कि मुगल राजा एवं छोटे-छोटे जमींदारों की संख्या काफी बढ़ गयी । इन लोगों की मुख्य मंशा कर वसुलना श्रीर समाज में शान्ति व्यवस्था कायम रखना था । परम्परा से चली श्रा रही ग्राम व्यवस्था के प्रति इनकी रुचि कम थी । यही कारण है कि प्राचीन काल से चली आरा रही ग्राम संस्था धीरे-घीरे मुरकाती गयी । मुगल काल में राज्य व्यवस्था में परिवतंन का प्रमाव ग्राम व्यवस्था पर भी पड़ा । गावि में मुस्लिम शासन पद्धति का जो प्रभाव पड़ा उस कारण ग्राम स्तर की संस्थाएँ शिथिल हो गयीं । मुगलकाल में ग्राम के रीति-रिवाज, परम्परायें तथा श्रान्तरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की नीति कम रही, लेकिन इस काल में विकेन्द्रित व्यवस्था के स्थान में केन्द्रित शासन व्यवस्था पर श्रघिक जोर दिये जाने के कारण भारत की विकेन्द्रित ग्राम व्यवस्था की प्राचीन व्यवस्था ढीली होने लगी । अंग्रेजी साम्ाज्य के श्राने के वाद तो केन्द्रित शासन व्यवस्था का नया दौर प्रारम्म हो गया जिसने परम्परागत व्यवस्था की जड़ें हिला दीं 1




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