गीता का व्यवहार - दर्शन | Geeta Ka Byahar Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० गीता का व्यवहार ददन असीम और सावजनिक हु इसलिए वह पुण एवं नित्य ह अत उसके आधार पर ही अपनी यावहारिक व्यवस्थाए समयानुकूल बाँघते रहना हमारे लिए बिदेष हितकर हो सकता हू । हा अय सस्कृतियों की भी जो जो बातें हमारी वतमान परिस्थिति के उपयुक्त और हितकर हो उनकी आध्यात्मिक दष्टि से छान बीन करके उनसे हमें लाभ उठाना चाहिए और जो जो प्राचीन यवस्थाए हमारे यहा अब तक प्रचलित ह उनमें से जो उसी रूप मे अथवा सशोधित होकर वतसान समय की परिस्थिति के उपयुक्त तथा हितकर हो उनका यथायोग्य उपयोग करना चाहिए हमको दष किसी से भी नहीं रखना चाहिए क्योकि प्राचीन और नवीन सभी बाते हमारी सस्कृति के व्यापक सिद्धान्त के अन्तगत ही हू इसलिए हमको यथायोग्य सब का सदुपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से इस देश की वास्तविक उन्नति ही न होगी कि तु सारे ससार को उसका अनुसरण करना पड़ेगा । बयोकि श्रीमदभगवदगीता का व्यावहारिक वेदात ही हमारी सस्कृति का मूल आधार हु और उसी के अनुसार आचरण करने से हमारी उन्नति सम्भव हु इसलिए उसी विषय के निरुपण करने का प्रयत्न इस पुस्तक में आगे किया जायगा। जग मड




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