भावना संग्रह | Bhavana Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.39 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ 2
लोक स्वरुप दिचारि के, झातम रूप निहार ।
परमारथ व्यवहार मुखि, मिध्या भाव निवारि ॥१०॥।
बोधि आपका भाव है, निदचय दुलेभ नाहिं ।
मव में प्रापति कठिन है, यह व्यवहार कहाहिं ॥1११॥ -
दर्श्ञान मय चेतना, आतम धर्म वखान ।
दया कमादिक रतनत्रय, यामैं गर्मित जान 11१ ९॥।
(श-( प० बुधघजनजी कृत )
गीता छंद
जेती जगत मैं वस्तु तेती, अधिर परणमती सदा ।
परणमन राखन नाहिं समरथ इंद्र चक्री मुनि कदा ॥।
सुतनारि यौत्रन और तन घन लान दामिनि दमकसा !
ममता न कीजे धारि समता मानि जल में नमक सा ॥१1|
चेतन चेतन सब परिग्रह हुआ अपनी थिति लहैं ।
सो रहें आप करार माफिक अधिक राखे ना रहें ॥।
अर शरण काकी लेयगा जब इंद्र नाहीं रहत हैं ।
शरण तो इक धर्म झातम जादि मुनि जन गहत हैं 1२1
सुरनर नरक पशु सकल हेरे कम चेरे वन रहे ।
सुख शासता नह भासता सब विपतिमें अतिसन रहे ॥।
दुख मानसी तो देवगति मैं नारकी दुख ही भरै ।
तियेच मदुल वियोग रोगी शोक सूट मैं जरै ॥३॥।
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