भावना संग्रह | Bhavana Sangrah

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Bhavana Sangrah by श्री चुन्नीलालजी देशाई - shree chunneelaljee deshai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ 2 लोक स्वरुप दिचारि के, झातम रूप निहार । परमारथ व्यवहार मुखि, मिध्या भाव निवारि ॥१०॥। बोधि आपका भाव है, निदचय दुलेभ नाहिं । मव में प्रापति कठिन है, यह व्यवहार कहाहिं ॥1११॥ - दर्श्ञान मय चेतना, आतम धर्म वखान । दया कमादिक रतनत्रय, यामैं गर्मित जान 11१ ९॥। (श-( प० बुधघजनजी कृत ) गीता छंद जेती जगत मैं वस्तु तेती, अधिर परणमती सदा । परणमन राखन नाहिं समरथ इंद्र चक्री मुनि कदा ॥। सुतनारि यौत्रन और तन घन लान दामिनि दमकसा ! ममता न कीजे धारि समता मानि जल में नमक सा ॥१1| चेतन चेतन सब परिग्रह हुआ अपनी थिति लहैं । सो रहें आप करार माफिक अधिक राखे ना रहें ॥। अर शरण काकी लेयगा जब इंद्र नाहीं रहत हैं । शरण तो इक धर्म झातम जादि मुनि जन गहत हैं 1२1 सुरनर नरक पशु सकल हेरे कम चेरे वन रहे । सुख शासता नह भासता सब विपतिमें अतिसन रहे ॥। दुख मानसी तो देवगति मैं नारकी दुख ही भरै । तियेच मदुल वियोग रोगी शोक सूट मैं जरै ॥३॥।




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