नीति - शास्त्र | Neeti Shatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कह; टन रद... कि व _ नीति-शास्त्रा पे व्यतीत करने के उपाय नहीं सिखाता । नियामक विज्ञान का कार्य आदेश की परि-- भाषा देना है, आदर्श सिद्धि के नियंमों का वर्णन करना नहीं । सौर्द्यं-विज्ञाक _ नियामक विज्ञान है । यह सौन्दर्य के आदशशं से सम्बन्धित है; किन्तु सुन्दर वस्तु की “रचना कैसे की जाये, यह प्रश्त इसके कार्य का कोई अंग नहीं । अतः नीति-शास्त्र, नियामक विज्ञान होने के नाते, शुभ अथवा सत्कमं के आदशं का विवेचन करता है और उसकी प्राप्ति के साधनों से इसका कोई सीधा सम्पकं नहीं है । यह हमें जीवन _ के पथ-प्रदर्शक सिद्धान्तों का ज्ञान देता है, किन्तु उन. सिद्धान्तों का उपयोग कंसे विया जाये, इसका कोई सम्बन्ध नहीं है । यद्यपि नी ति-शास्त्र नियामक विज्ञान है, तथापि _ व्यावहारिक विज्ञान नहीं है । वस्तुतः नी ति-मीमाँसा के अध्ययन का हमारे नेतिक _ जीवन पर कुछ प्रभाव तो अवद्य ही पड़ता है । अतः .यह हमारे व्यवहार को प्रभावित ' करता है । किन्तु इस कारण नीति-शास्त्र क्रियात्मक विज्ञान नहीं बन जाता । नीति-शास्त्र कला नहीं है । यदि नीति-शास्त्र को . व्यावहारिक विज्ञान नहीं कहा जा सकता तो कला तो कदापि थी नहीं कहा जा सकता ।. हम व्यवहार की कला वी तो कल्पना भी नहीं कर सकते । विद्या की कोई भी शाखा हमें नति जीवन की कला नहीं सिखा सकती । यदि यह मान लिया जाय कि यह हमें नतिक शिक्षा अथवा नैतिक व्यवहार के नियम दे सकती है, तथापि यह हमें उनका क्रियाएमक _ प्रयोग नहीं सिखा सकती । नैतिक शिक्षा से अनशिज्ञ होने पर भी सम्भव है कि हम चरित्र की दुबंलता और संकल्प शक्ति के अभाव के कारण उस काय-रूप मे परिणित न कर पायें । नैतिक जीवन की कला की शिक्षा के लिये “उपदेश की अपेक्षा उदाहरण :'बरणीय है” और व्यक्तिगत नैतिक अनुभव तो दोनों से श्रेष्ठ है। अत: यदि नीकि. शास्त्र का कार्य व्यावहारिक विज्ञान होने के नाते, उपदेश देना भी होता, तब भी: वे नैंतिक-जीवन की कला की शिक्षा के लिये अपर्याप्त होते । इस प्रकार, नीति शास्त्र न तों व्यावहारिक-विज्ञान है, न कला । यह एक नियामक विज्ञान मात्र है। न क्या व्यवहार की कला सम्भव है ? व्यवहार की कला कहना अनुपयुक्त है । . कला” का प्रयोग विभिन्‍न अर्थों में किया जाता है । शिल्प कलाओं व ललित कलाओं की प्रकृति समान नहीं है । शिरप-कलाओं का उद्देश्य उन वस्तुओं का उत्पादन है जो किसी दूरस्थ प्रयोजन के लिये उपयुक्त हैं, जबकि ललित कलाओं का उद्देश्य उन ... वस्तुओं की सृष्टि है जो स्वत: वांछनीय हैं । एक उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन दि .. करती है; दूसरी स्वत: मुल्यवान वस्तुओं का । तथापि दोनों का एक निश्चित फल प्प । पं रे ।




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