महाभारत की नामान्क्रमणिका | Mahabharat Ki Namanukramanika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.41 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनादि (९ ननन-नननानाणणणाणाणायणयणाणायाणाणाणाणाणणााणातयल्यल्यएयणयणएयएयतुएयएतइएस्शशााधिािनाारनिाीिािगागयाागाणिाानिाणतणाणाााणाणााानाणााजााथणणण अनादि-मगवान् विष्णुका एक नाम ( अजुल १४९। ११४. अनाधृष्टि-( १) रौदाश्रद्वारा मिश्रकेशी अप्सराके गर्भसे उत्पन्न ुचेयु अथवा अन्वग्भानु का नाम अनाधृष्टि? था ( आदि० ९४ । ८-9२ ) | (२) सात यादव महारथियेमिंस एक ( सभा० १४ । ५८ ) । ये उपप्छब्य नगरमें अभिमन्युके विवाहके अवसरपर उसकी माता सुभद्राके साथ पधारे थे ( विराट० उ२। २२ ) । कुरुशषेत्र- में श्रीकृष्ण और अजुनकों घेरकर चलनेवाले अनेक वीरोंमें एक अनाधृष्टि भी थे ( उद्योग० १५१ । ६७ | ये ही वृद्धभेमके पुत्र थे? जिनकी चर्चा धृतराष्ट्रने की है ( द्रोण० १० । ५५ ) | इन्हींका वृष्णिवंशी वार्धक्षेमि नामसे उल्लेख हुआ है जिन्हें कृपाचार्यने द्रोणपर आक्रमण करनेसे रोका था ( द्वोण० २५ । ७१-५२ 3 ) अनालम्ब-एक तीर्थ जिसमें खान करनेसे पुरुपमेघ यशका फल प्राप्त होता है ( भनु० २५1 ३२-३३ ) | अनिकेत-कुबेरकी सभामें उनकी सेवाके छिये सदा उपस्थित रहनेवाले यक्षॉंमेंसे एक ( सभा० ४० । 3८ ) | अनिमिष-( १ ) गरुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग० १०१। १० फ्ै | ( २) भगवान् शिवका एक नाम ( अनु १७ । ४9 । ( है ) भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु १४९ । दे . | अनिरुद्ध-(१) भगवान श्रीकृष्णके पौच एवं प्रयुम्न के पुत्र (आदि ० १८५। १७ | | अनिरुद्धका प्रच्छन्नरूपसे बाणपुत्री उषाके साथ पहुँचकर उसके साथ आनन्दपूर्वक रहना । बाणासुर- का अनिरुद्धकों कैद करके कष्ट देना । नारदजीके मुख्से मनिरुद्धको बाणासुरके यहाँ बंदी हो कष्में पड़ा हुआ सुनकर श्रीकृष्णका बाणनगरपर आक्रमण अनिरुद्धका उद्धार तथा उपाके साथ द्वारका-आगमन आदि ( सभा ० ३८ अध्याय दा० पाठ श्रीकृष्णचरित्रके अन्तर्गत ) । अजुनसे धनुवेंदकी शिक्षा छेते समय ये युधिष्टिरकी सभामें साम्ब आदिके साथ ण्रिजमान होते थे (सभा ० ४ । ३३-३६ ) । अनिरुद्ध- की विष्णुरूपता तथा इनके द्वारा ब्रह्माजीकी उत्पत्ति ( मीष्म० ६४५ । ७१५५ शास्तिन ३४०। दे०-३१ 2 | अनिरुद्ध ( विष्णु ) के नाभि-कमछ्से ब्रह्माजीका प्रादुर्भाव ( शान्ति० डेप । 9५-१७). | (२) वष्णिवंशी क्षत्रिय जो प्रयुश्न पुत्रसे भिन्न था । इन दोनौंका द्वौपदीके स्वयंवरमें आगमन हुआ था ( आदि० 9८५ । 3७-२० ) | ( ३ ) मांसभक्षणका त्याग करनेवाला एक राजा ( अनु० ११५ । ६० .) | ( ४.) भगवान् विष्णुका एक नाम ( जनु० १४९। ३३) | अनिल- (१) आठ वसुअेमिंसे एक । इनके पिता धर्म और माता श्वासा हैं । इनकी पत्नीका नाम शिवा है और मनोजव एवं म० ना सुन अविज्ञातगति नामक दो पुत्र हैं ( क्रादि० ६६ । १७- २५ ) | (२) गरुडकी सुख्य-मुख्य संतानोंमेंस एक ( उद्योग० १०१ । ९ ) | ( ३ ) भगवान् शिवका एक नाम ( अनु० 3७ । १०० 2 | ( छे ) भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । ३८ . अनीकविदारण-सिंधुराज जयद्रथका भाई ( वन० २६४ । १२ । अ्जुनद्वारा वध ( बन० २७१ । २७ ) | अनील-प्रमुख नागोंमेंसे एक ( आदि० ३५ । ७ ) | अद्भु-महदाराज ययातिके द्वारा दार्मिष्टासे उत्पन तीन पुत्रॉमेंसे एक मझले ( आदि० ७५ । ३३-३५. ) । अपनी युबा- वस्था न देनेके कारण इनकों पिताद्वारा जराग्रस्त होनेअग्िहोत्र-त्यागी बनने तथा युवा होते ही इनकी संतानों के मरनेका अभिक्ाप ( आदि० ८४ । रण-रदे 2 । अजुकमी-एक विश्वेदेव ( जनु० ९१ । ३२) | अजुक्रमणिकापवे-आदिपर्वका एक अवान्तरपरव पहला अध्याय । अजुगीतापवे-आश्वमेधिकपर्वके सोलहवें अध्यायसे ९२ तक- का एक पर्व । चछुपोप्ा-एक विश्वेदेव ( अजु० ९१ । ३७ ) । अजुचक्र-प्रजापति त्क्छादारा स्कन्दको दिये गये दो पार्पदो- मेंसे एक । इसका दूसरा साथी चक्र ला ( शल्य० ४५७ । ४५ है || अचुदात्त ( सर )-( १) पाश्चजन्य अभ्निद्वारा अपनी दोनें मुजाओंसे उत्पन्न किये गये प्राकृत और वैकृत भेदोंवाल्म अनुदात्तः नामक स्वर ( बन० रर०। पद ) । (२ ) पा्चजन्यद्वारा पितरोंके लिये उत्पन्न किये गये पाँच पुर्जोमेंसे एकः इसकी उसत्ति प्राणके अंशसे हुई थी | ह वन५ २२५ | ८-१७ जे | अनुयूत-वदद जुआः जो कौरवों और पाण्डवॉने वनवासकी बाजी लगाकर दूसरी बार खेठा था ( सभा० ७६। १०-रध . | अजुचूतपवे-सभापर्वके अन्तर्गत अध्याय ७४ से ८१ तकका भाग | अनुपावृत्त-एक भारतीय जनपदका नाम (भीष्म ० ९। ४८) | अनुमति-एक कलासे रद्ति अर्थात् चतुर्ददीयुक्त पूर्णिमाकी अधिष्टाची देवी ( सल्य० ७ । १३ 2 | अनुयायी-झतराष्ट्रके सौ पुत्रॉमेंस एक ( आदि० ६७। १०२) | इसीका दूसरा नाम अग्रयायी है (आदि ० ११६ | ११ कै । भीमसेनके द्वारा मारे जाते समय इसके अनुयायी नामका ही उल्लेख हुआ है (द्रोण० ५७। १७-२०. | अनुविन्द-( १ ) ध्रतराष्ट्रके सौ पु्रोमेंस एक ( आदि० ६७ । ९४ ) | घोषयात्राके समय दुर्योधनके साथ गन्धरवों- द्वारा यह भी बंदी बनाया गया था (वन० रधरे। ८) |
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