विश्व - भूगोल की रुपरेखा | Vishav - Bhugol ki Ruprekha

Vishav - Bhugol ki Ruprekha  by ए. एन. भट्टाचार्य - A. N. Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ नव रो लक व सौर-मण्डल तथा पृथ्वी . [ ४ पिछले पृष्ठ की तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे सूय॑ की दूरी बढ़ती जाती. है उसी प्रकार ग्रहों का शझ्राकार भी बढ़ता जाता है । बीच के .ग्रह वृहस्पति का श्राकार सबसे बड़ा और उसके परुचातु के प्रहों का श्राकार क्रमश छोटा होता चला गया है जो सिंगार पिंड की श्राकृति से मेल खाता है । इसके भ्नुसार बड़े ग्रहों को ठण्डा होने में समय लगता है । इसलिए उनकी ग्रहिकाश्रों की संख्या भी अधिक है । बृहस्पति भ्रौर शनि सौर-मण्डल के सबसे बड़े ग्रह हैं । भरत उनकी ग्रहिकाओं की शनि ग्रह--इसके इद-गिर्द एक वलय है । संख्या भी क्रमश ४ श्रौर € है । पृथ्वी का झाकार सौर-मण्डल के ग्रहों में बहुत छोटा होने के कारण उसकी ग्रहिका भी केवल एक है जो चन्द्रमा कहलाता है तथा बुद्ध श्रौर शुक्र पृथ्वी से भी छोटे होने के कारण ग्रहिकाहीन हैं। इस विचार को पर्याप्त मान्यता प्राप्त हो रही है । लेकिन कौन जानता है कि भविष्य में इससे भी झधिक उपयुक्त साध्य उपस्थित हों । ं भू-श्राकृति . भू-भ्राकृति के विषय में प्राचीन काल से दो विचार रहे हैं। भ्रारम्भ में इसे चपटी माना जाता था । परन्तु आगे चलकर इसे गोल श्रण्डाकार या पिण्डाकार माना जाने लगा इसके गोल होने के प्रमाण सबसे पहले मंगेलन (हव8ु5180) ने सनु १५२२ ई० में पृथ्वी का पूरा चक्कर लगाकर दिया था। कोलम्बस तो धोखे से पदिचमी दीपसमूह को पूर्वी द्वीपसमूह समभककर वापिस लौट - प्राया था । श्ति प्राचीन काल में भी पृथ्वी को गोलाकार समक्रा गया था यूडोक्स . भौर भ्रस्तू ने तारों की विभिन्न स्थानों से भिन्न ऊंचाइयों के द्वारा यह सिद्ध किया था । अब तो यह स्वीकार किया जा जुका है कि पृथ्वी गोल है चपटी नहीं । इसकी सतह वक़ाकार है इस विषय में कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये. जाते हैं । किन्तु केवल. वक़ाकार सिद्ध हो जाने से इसका गोलाभ (5900051) होना सिद्ध नहीं होता अतः पहले हमें इसे वक़ाकार सिद्ध करना होगा भ्ौर फिर गोलाम सिद्ध करना . पड़ेगा । ् न न




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