सौर मंडल | sor mandal

sor mandal  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- सभमडल के अध्ययन से यहूपता लगता है कि अनन्त आवाण में प्रह-नक्षत के अलादा बहुत से तेजोमेघ या निहारिकाएं अर्थात्‌ वाप्पह तेज के सुविशाल समूह भो विद्यमान है । जो ग्रह-नक्षतर आदि की माति ही भ्रमण करते हैं । उनके निरस्तर समण में इन तेजमेघों से तेज का विकिरण तथा उनका सकुचन ) होता रहता है 1 कह्पना को जाती हैँ कि किसी अगीत में दिश्व का सम्पूर्ण आवरण (593८6) इस प्रकार के एक स्व व्यापी तेजोपुस्ज से भरा हुआ था जिनमें घौरें धीरे सकुचन और विच्छेद हुआ भौर भिन्न भिन्न अनेक लेज- मेघो की सृष्टि हुई । ये तेजोमेप आकार में करते हुए आफाश में पारस्परिक आकर्षण का खेल सेलते रहे 1 एक ऐसा हीते जोमेव वह था, जो हमारे मूर्ये का प्रारम्मिक रूप था, जो धोरें धीरे सडुचिन और घनोइत हो रहा था । अरबों वर्षों के इस सकुचत और घनीकरण की परम्परा में उस प्रारमिक .. ६... शनि 7 2 मर, दे हे देय के. न जा मी दा कि एप ७--सुर्प का पार मिक रुप




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