संत - दर्शन | Sant - Darshan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.69 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्छ संत-वाणी ६४-निसके मनमें ईश्ररका प्रेम उतन्न हो गया उसे संसारका कोई पुख अच्छा नहीं छगता | ६५-गजो प्रभुके प्रेममें बावला हो गया है जिसने अपना सब बुछ उनके चरणोंमें अपंण कर दिया है उसका सारा भार प्र अपने ऊपर ले लेते हैं । ६६-संसारमें आकर भगवान्के विषयमें तक युक्ति विचार आदि करनेसे कुछ फ़ठ नहीं । जो प्रमुको प्राप्त कर आनन्दानुमव कर सकता है वह्दी धन्य है । ६७--सभी मनुष्य जन्म-जन्मान्तरमें कभी-न-कभी भगवान्कों देखेंगे ही । ६८-सूईके छेदमें तागा पहनाना चाहते हो तो उसे पतला करो । मनको ईश्वरमें पिरोना चाहते हो तो दीन-हीन-अकिश्वन बनो । ६९-भक्तका हृदय भगवान्की बेठक है । . ७०-संसारमें जो जितना सह सकता है वह उतना ही महात्मा है । ७१-जिसका मनरूप चुंबकयंत्र मगवान्के चरणकमलॉकी ओर रहता है उसके हब जाने या राह भूलनेका डर नहीं | ७२-साधनकी राहमें कई बार गिरना-उठना होता है परन्तु ग्रयन करनेपर फिर साधन ठीक हो जाता है | ७३-सर्वदा सप्य बोलना चाहिये । कछिकालमें . सप्यर्का आश्रय ढेनेके बाद और किसी साथनका काम नहीं । सत्य ही कढिकाठकी तपस्या है |
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