संत - दर्शन | Sant - Darshan

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Sant - Darshan  by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्छ संत-वाणी ६४-निसके मनमें ईश्ररका प्रेम उतन्न हो गया उसे संसारका कोई पुख अच्छा नहीं छगता | ६५-गजो प्रभुके प्रेममें बावला हो गया है जिसने अपना सब बुछ उनके चरणोंमें अपंण कर दिया है उसका सारा भार प्र अपने ऊपर ले लेते हैं । ६६-संसारमें आकर भगवान्‌के विषयमें तक युक्ति विचार आदि करनेसे कुछ फ़ठ नहीं । जो प्रमुको प्राप्त कर आनन्दानुमव कर सकता है वह्दी धन्य है । ६७--सभी मनुष्य जन्म-जन्मान्तरमें कभी-न-कभी भगवान्‌कों देखेंगे ही । ६८-सूईके छेदमें तागा पहनाना चाहते हो तो उसे पतला करो । मनको ईश्वरमें पिरोना चाहते हो तो दीन-हीन-अकिश्वन बनो । ६९-भक्तका हृदय भगवान्‌की बेठक है । . ७०-संसारमें जो जितना सह सकता है वह उतना ही महात्मा है । ७१-जिसका मनरूप चुंबकयंत्र मगवान्‌के चरणकमलॉकी ओर रहता है उसके हब जाने या राह भूलनेका डर नहीं | ७२-साधनकी राहमें कई बार गिरना-उठना होता है परन्तु ग्रयन करनेपर फिर साधन ठीक हो जाता है | ७३-सर्वदा सप्य बोलना चाहिये । कछिकालमें . सप्यर्का आश्रय ढेनेके बाद और किसी साथनका काम नहीं । सत्य ही कढिकाठकी तपस्या है |




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