कांग्रेस लीग और हिन्दू महासभा | Kangres League Aur Hindu Mahasabha (1946)

Kangres League Aur Hindu Mahasabha (1946) by विजयकुमार पुजारी - Vijay kumar pujari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) का देहान्त १८४६८ में हुआ; पर झपनी स्त्यु से पहले दी वह हिन्दू-मुस्लिम दूंगे की प्रृष्ठभूमि तेयार कर गये थे । बम्बई और नासिक में जो हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुये और उन दंगों से सरकार ने हिन्दुओं की नागरिक स्वतन्त्रता पर जो झाक्रमण किया, उससे लोकमान्य तिलक जे से राष्ट्रीय नेता ने भी हिन्दू संगठन की आवश्यकता को अनुभव किया । लोकमान्य तिलक ने हिन्दुओं को संगठित करने और वीरता का पाठ पढ़ाने के लिए हिन्दुओं में गणेशोत्सव तथा श्री शिवाजी उत्सव की प्रथायें प्रच- लित कीं । डाक्टर पट्टाभि सीतारामय्या “काँग्रेस का इतिहास' में लिखते हैं--'शिवाजी महाराज की स्सृति को फिर से ताजा करने का श्रेय लोकमान्य तिलक को ही है। सारे महाराष्ट्र में शिव जयंतियाँ मनाई जाने लगीं, जिनमें उत्सव के साथ समभाएँ भी होती थीं । पहली ही सभा में . दक्षिण के बड़े बड़े मराठा राजा और मुख्य मुख्य जागीरदार और इनामदार आये थे। इस सिलसिले में १४ सितम्बर १८६४ को कुछ पद्य तथा अपना भाषण छापने के अपराध में उन्हें १८ महीनों. की कड़ी केद॒ की सजा दी गई थी, पर वह ६ सितम्बर १८४८ को छोड़ दिए गए |: अध्यापक मेक्समूलर; सर विलियम हण्टर, सर रिचाड़ गाथे मि० विलियम केने श्रीर दादाभाई नोरोजी ने . एक द्रख्वास्त दी थी; जिसके फलस्वरूप उनकी रिहाई हुई थी । उनके जेल में रहते हुए ताजीरात हिन्द में १२४ ए. और १४३ ए. दफाएं नई जोड़ी गईं, जिससे कि. वह कानून के शिकंजे में फंसाये जा सकें ।''




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