काका कालेलकर | Kaka Kalelakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.98 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ने अपनी पुस्तक “हिमालय की यात्रा' में किया है। -यद्द पुस्तक मुलत
गुजराती में लिखी गयी है। सुन्दर शब्द खित्रो के लिए गुजराती साहित्य में दरें
पुस्तक की अच्छी मान्यता है ।
केवल यात्रा मही थी यह । एक-दो स्थानों पर रहकर उन्होंने ध्यान साधन
भीकीथी। उन्होंने लिखा है कि वे स्वराज्य मकल्प की प्रति के लिए लौटे थे
बहते हैं कि ध्यान की स्थिति में ही यह प्रेरणा उन्हे मिली थी ।
उनवी हिमालय यात्रा का अत सन् 1913 में नेपाल की यात्रा के साथ हुआ
उन दिनों उनका मन सार्कृतिक स्वराज्य के चिन्तन में लगा था। इमलिए
'रामदप्ण मिशन के सम्पर्क मे भी आये । मिशन के अध्यक्ष स्वामी श्रह्वानन्द
विचार-विमर्श हुआ । स्वामी जी ने सन्यास की दीक्षा के प्रश्न पर उन्हे बताया
अभी तीन सान प्रतीक्षा बरनी होगी ।
बे तीन साल कभी पूरे नहीं हुए बयोकि अब काका के विघारों में परिवर्तन ।
'चुगा था । दे स्वामी विदेकानन्द के प्रति श्रद्धानत थे पर सस्या का रूप हो
सन्यासियी की भीड़ देख कर उनका आग्रह ढीला पड गया । उन्हे सगा कि ऐत
करके दे पत्नी और सन्तान के प्रति अस्पाय करेंगे। इसके अतिरिक्त राष्ट्री
शिक्षा का सबल्प अभी भी उनके मत में जीवित था । दे शातिनिकंतन गये । उन
मन वहाँ रम रहा था।
उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा की दूष्टि से महत्वपूर्ण कई सरपाओ थे) न कंदल दे।
बल्वि बुछ में रहकर उन्होंने बाम भी बिया । हरिद्वार के ऋषिवुल में दें '
महीनों तक सुद्य अधिप्टाता के पद पर रहे । स्वामी थद्धानग्द के शुरुबुस बाँग
वो देयर उन्हे बड़ा आश्चयं हुआ कि वे केवल जनता की मदद से इतनी ब
सस्पा चला रहे हैं ।
उन्होंने राजा महेन्द्र प्रदाप बा प्रेम महाविद्धालय भी देखा । माधाएं कूपा+
लानी, घोइयराम दिददानी, मारायण मलकनी, से तीनों एक आम का
सदालन बरते थे । उसका नाम था--'सित्पु इहाचर्पधिम' । काका साहद पहाँ भी
हा महीने रहे । बहाँ से दे फिर शातिनिबतन गये भौर छः सहोने दलाजंप बाजू
वो नाम से पहने रहे । उसके बाइ आदर इपालानी और दिरिधारी इपपसानी के
साथ बर्मो लाने सापु के देश से दे पं. सदनसोहन
-विनिमद दिया था 1
नया में भादों हुई गरेधी
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