सरस्वती अखण्डानन्द स्वामी | Saraswati akhandananda swami

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Book Image : सरस्वती अखण्डानन्द स्वामी  - Saraswati akhandananda swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संग्रह रद [द्व अमन हूँ। इस प्रकार मने का शभाव निश्चय करके अपने स्वरूप [ स्थित होना ॥ 'र) जाग्त एवं स्वप् अवस्था में मन विषयों का चिन्तन करता है पुपुप्तिमें नहीं करता। समाधि श्र मूर्व्छा में भी नहीं! में अवस्था हीं हूँ, इनका साक्षी तुरीय हूँ। मन बिकारी है, दृष्य है, जड़ है। मेथ्या विपय भावरूप है, उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। सनकी पाते, घोर, मूढ, सुख, दुःख, आदि समस्त च्त्तियां दीख रही हैं। दीखने की स्थिति में सन पत्थर-सा निःसंकल्प हो जाता है । (३) में स्वामी हूँ श्रार मन मेरा सेवक | मैं जड़ दारीर नहीं चेतन आत्मा हूँ। मेरे मघीन मन का अस्तित्व है। मैं जब मूखेता से सपने को दारीर मान बैठता हूँ तत्र वद्द मेरा संचालन करने लगता है। रे मन आा, जादां में कहूँ, यहां स्थिर निःसंकल्प हो जा। यहीं तो मैं तुझे छोड़ता हैं। मैं यददां स्थिर हू, तेरी मीज।




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