योग विज्ञान के मूल तत्त्व | Yog Vigyan Ke Mool Tatva
श्रेणी : योग / Yoga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.4 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. मोहन लाल चढार का जन्म एक जुलाई 1981 ईस्वी में मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित पुरातात्विक पुरास्थल एरण में हुआ। इन्होंने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से स्नातक तथा स्नातकोत्तर की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में उत्तीर्ण कर दो स्वर्णपदक प्राप्त किये तथा इन्हें डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर द्वारा गौर सम्मान से सम्मानित किया गया। इन्होंने भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में नेट-जेआरएफ, परीक्षा उत्तीर्ण कर सागर विश्वविद्यालय से एरण की ताम्रपाषाण संस्कृति: एक अध्ययन विषय में डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की तथा विश्वविद
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योग विद्या भारत वर्ष की प्राचीनतम् परम्परा मानी जाती है। इतिहास व पुरातत्व के अनुसार योग से सम्बधित सर्वाचीन प्रमाण पाँच हजार वर्ष पूर्व हडप्पा सभ्यता से मिले है। हडप्पा सभ्यता से योग मुद्रा युक्त मूर्तियों प्रकाश में आई है, जिनसे विविध योग आसनों की जानकारी मिलती है। इन अवशेषों के माध्यम से भारत में लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व योग विद्या की पुष्टी अनेक देशी व विदेशी विद्वानों ने की तथा सम्पूर्ण विश्व के लोगों ने इस तथ्य को एक मत से स्वीकार किया कि भारत योग विद्या का जनक है। वैदिक काल के महाऋषियों ने योग ध्यान के माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण मंत्रो व ऋचाओं की रचना की तथा इन्ही ऋचाओ का संग्रह ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद उपनिषदों, आरण्यकों, वेदांगों षड्दर्शनों में मिलता है। वैदिक ऋषियों में वामदेव ऋषि,, अगस्त ऋषि, कण्व ऋषि, विश्वामित्र ऋषि,, यशिष्ट ऋषि, भृगु ऋषि, अत्रि ऋषि, भारद्वाज ऋषि एवं विदुषी स्त्रियों में अपाला, घोषा एवं लोपामुद्रा इत्यादि ने वनाच्छादित क्षेत्रों में योग व ध्यान की अनुसंधान शालाएँ बनाकर अनेक महत्वपूर्ण गुप्त विद्याओं, मंत्रों व दर्शनों का ज्ञान प्राप्त किया था। छठवी शती ईसा पूर्व में महत्वपूर्ण धार्मिक क्रान्ति हुई इसके जनक योग साधना के पूर्ण साधक एवं बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध एवं जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी थे। पाँचवी शती ईसा पूर्व में रचित पाणिनी के अष्टाध्यायी में योग विद्या के प्रमाण मिलते है। सिकन्दर के आक्रमण के समय चौथी शती ईसा पूर्व में संसार के ख्याति प्राप्त तक्षशिला विश्वविद्यालय में योग शास्त्र की उत्तम शिक्षा प्रदान की जाती थी। विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय के अपने योग गुरुओं के सानिध्य में योग की उत्तम शिक्षा प्राप्त की थी। वह अपने जीवन में योग साधना को महत्व देते थे। इसी कारण चन्द्रगुप्त मौर्य अपने जीवन के अन्तिम चरण में जैन गुरु भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत जाकर कर्नाटक प्रान्त में स्थित श्रवणवेलगोला में योग साधना के माध्यम से समाधि प्राप्त की थी। बौद्ध धर्म के माध्यम से मौर्य शासक अशोक महान ने योग की एक विद्या पिपासना ध्यान के महत्व को समझा एवं इसके अनुसरण के बाद उसने भेरीघोष अर्थात युद्ध नीति को त्यागकर धम्म नीती को अपनाया था। भगवान शिव व हिरण्यगर्भ योग के जनक माने जाते है। राम, कृष्ण, हनुमान, बुद्ध, महावीर व पंतजली ने योग प्रविधियों का विस्तार किया था। योग का सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपनी विभिन्न प्रविधियों के माध्यम से विस्तार किया। दूसरी शती ईसापूर्व में रचित महाभारत, रामायण, पुराण साहित्य में सूर्य उपासना व योग, ध्यान, प्राणायाम, अष्टांग योग, अष्टसिद्धि योग, भक्तियोग, मंत्रयोग, हठयोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, लययोग, राजयोग व क्रियायोग इत्यादि के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इसी समय महाऋषि पंतजली ने योग के महत्वपूर्ण ग्रन्थ "योग दर्शन" की रचना की इस ग्रन्थ में योग के व्यवहारिक पक्षों का सूक्ष्मता के साथ वर्णन किया है। वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, पतंजली का महाभाष्य योगसूत्र, शिव संहिता, घेरण्ड संहिता, सांख्य दर्शन, गोरक्षशतक, योग वशिष्ठ इत्यादि प्रमुख ग्रन्थ माने जाते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के योग विभाग द्वारा "योग विज्ञान के मूलतत्व" शीर्षक से भारत के योग विद्या में ख्याति प्राप्त प्रबुद्ध योग गुरु अय्यंगार -योग के संस्थापक व भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित स्व. श्री बी के एस अय्यंगार जी की स्मृति में यह ग्रन्थ निकालने का श्रेष्ठ प्रयास किया जा रहा हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रन्थ योग के विद्यार्थियों के साथ साथ आमजनों को भी काफी उपयोगी सिद्ध होगा। इस योग ग्रन्थ के उत्तम सम्पादन हेतु योग विभाग के सम्पादक जनों को मैं बधाई व शुभकामनाएँ देता हूँ।
योगःकर्मसु कौशलम् ।। अर्थात योग से कर्मों में कुशलता आती हैं..
User Reviews
No Reviews | Add Yours...