ब्रह्मावर्त - आकाशवाणी पत्रिका | Brahmavarta - Akashvani Patrika

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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ करुणा शंकर दुबे - Dr Karuna Shankar Dubey

नाम - डॉ0 करुणा शंकर दुबे
वर्तमान पद - सहायक निदेशक,आकाशवाणी,भारतीय प्रसारण सेवा (कार्यक्रम)एवं केन्द्राध्यक्ष आकाशवाणी ,अल्मोड़ा।
पिता का नाम - स्व0 पं0 कीर्ति शंकर दुबे
माता का नाम - स्व0 शशि प्रभा दुबे
पत्नी–श्रीमती गीता दुबे
जन्म
|
- 14 जून 1958
शिक्षा
- प्रारम्भिक शिक्षा -नगर पालिका प्राथमिक विद्यालय, पक्की
बाजार(अर्दली बाजार) वाराणसी ।
उच्च शिक्षा –काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
- एम0 ए0 संस्कृत कला संकाय (काoहि0वि0वि0) - पी0 एच0 डी0, कला संकाय (काOहि0वि0वि0) - आचार्य पालि ,सम्पूर्णानन्दन संस्कृत विश्वविद्यालयऔर बौद्ध शब्द कोष का अध्ययन कार्य हेतु।
भूमण्डल(वाराणसी) - पाक्षिक हिन्दी के

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शहर के बढ़ते शोरगुल ने बहेलिये को विवश कर दिया था कि वह गांव के उस छोर की ओर शिकार के लिए चल चले. जिधर पंछियों ने अपना बसेरा बना रखा है. आखिर हम जैस शुकों के साथ मजबूरी भी थीकि हमारागुजर बसर भी वहीं संभव है, जहाँ हमारी क्षुधा शान्त हो सके, क्योंकि सभी पेड़ों पर तो व्यापारियों ने अपना अधिकार बना रखा है। शहरी विक्रेताओं के कब्जे में जो अमरुद है वह हमको मुयस्सर ही नहीं हो सकता, वह अब अखबारी कागजों में होता है, जहाँ हमारे चोंच की पहुँच ही नही हो सकती है। यहाँ आकर बहेलिया भी वही कर रहा है, जो मैं यहाँ रहकर कर रहा हूँ। मैं तो चिरई गांव में हूँ, यहाँ चन्द्रिका सिंह उपासक का अमरुदों का बगीचा है, स्वयं उपासक जी तो बड़े बौद्ध विद्वान हैं. हम शुकों को उनकी विद्वत्ता से क्या लेना देना, हमें तो उनका शान्त-चित्त रहना ही अच्छा लगता है, क्योंकि हमें तो अपने मतलब के फलों की चिन्ता थी और उन वृक्षों के कोटरों की भी चिन्ता थी, जिसमें हमारा बसेरा था। सब कुछ निःशुल्क यहाँ सुलभ था, हालांकि बहेलिये यहाँ पहले भी आये थे, उनकी आहट कौओं की कांव-कांव से चल पायी थी, किन्तु इस बार तो मेरे ही इलाके में बहेलिये की गंध थी, जाल की महक थी, शायद हम सब पर उसकी निगाह थी, वैसे दीपावली से पहले उल्लूओं की धर-पकड़ होती है। पितरपक से पहले कौओं की धरपकड़ होती है, परन्तु हमारी तो बारहों महीने होती रहती है। शायद हम किसी बंगाली बाबू के घर की समृद्धि के रुप में सराहे जाते हैं, या फिर किसी बेरोजगार पण्डित जी के लिए कामगार ज्योतिर्विद सहायक बनकर पण्डित की स्थापना पं0 तोता राम शास्त्री के रुप में कराते हैं। चिन्ता यह थी कि आज कोटर से बाहर निकलूं या नहीं निकलूं ? यदि बाहर नहीं निकलता हूँ, तो भूख के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त कर जाऊँगा, यदि बाहर निकलता हूँ तो बहेलिया कोई न कोई उपक्रम करके अपने जाल में पकड़ ले जाएगा। भोरहरि हो आई, पेट की व्याकुलता और पंख के कसरती स्वभाव ने मुझे कोटर से बाहर निकाल ही दिया, और मैं लकदक भरे कचखरे अमरुद के झुरमुट में बैठने का प्रयास कर ही रहा था कि पहले से उरझे शुकों ने शोर मचाना शुरु कर दिया। मैं बात कुछ समझता, मैं भी उस जाल में फंस गया। अब मामला समझ में आ गया कि बहेलिया तो अमरुदी रंग का परिधान पहन कर उसी पेड़ पर, जाल बिछा कर बैठा था, जो भी पंक्षी वहाँ लालच में बैठता, झट बहेलिया ताना बाना कस देता। पक्षियों के चीं-चीं करने से पहले वह उसे अपने वश में




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