महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी | Mahamahopadhyay Pandit Sudhakar Dwivedi
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
700 KB
कुल पष्ठ :
24
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम - डॉ0 करुणा शंकर दुबे
वर्तमान पद - सहायक निदेशक,आकाशवाणी,भारतीय प्रसारण सेवा (कार्यक्रम)एवं केन्द्राध्यक्ष आकाशवाणी ,अल्मोड़ा।
पिता का नाम - स्व0 पं0 कीर्ति शंकर दुबे
माता का नाम - स्व0 शशि प्रभा दुबे
पत्नी–श्रीमती गीता दुबे
जन्म
|
- 14 जून 1958
शिक्षा
- प्रारम्भिक शिक्षा -नगर पालिका प्राथमिक विद्यालय, पक्की
बाजार(अर्दली बाजार) वाराणसी ।
उच्च शिक्षा –काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
- एम0 ए0 संस्कृत कला संकाय (काoहि0वि0वि0) - पी0 एच0 डी0, कला संकाय (काOहि0वि0वि0) - आचार्य पालि ,सम्पूर्णानन्दन संस्कृत विश्वविद्यालयऔर बौद्ध शब्द कोष का अध्ययन कार्य हेतु।
भूमण्डल(वाराणसी) - पाक्षिक हिन्दी के
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जगदगुरु भारत की भूमि का वैश्विक महत्व है। अध्यात्म एवं ब्रहमाण्ड की विलक्षण परम्पराओं से सराबोर साहित्यिक ,सांस्कृतिक जीवन को नये आयाम देना ही भारतीयता है, इसके वास्तविक स्वरूप को समझते ही प्राणी स्वयं को प्रकृति से जुड़ा अनुभव करने लगता है। यहाँ के रीति-रिवाज की श्रृंखला असीमित है, प्रत्येक साहित्य की अपनी भाषा भी होती है
और उसका अपना जन-जुड़ाव भी होता है। इसके पीछे कोई न कोई रहस्य अवश्य छिपा हुआ होता है। अपने धर्म, आस्था, पूजा और अर्चना को मूर्तरूप देने के लिए प्रतीक मन्त्र और गाथा है जो सम्पूर्ण भारतीयता को अतीतकाल से वर्तमान तक को समृद्ध बनाये हुए हैं। चाहे कर्मकाण्ड के बहाने से जोड़ते रहे हो या दुःख से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिष , खगोल में समाधान उपलब्ध होते रहे हैं। यह विवेचन प्रतीक रुप नहीं है , मनुष्यता को जीवंत रखने का सहज माध्यम है किसी भी शुभ अवसर पर या किसी भी मंगल कार्य पर परिवार के लोग इन साहित्यों के मर्म का स्मरण अवश्य कर लेते हैं, मानो अपनी समृद्ध परम्परा को सजीव और साकार कर रहे हों।
यद्यपि समय के साथ साहित्य और साहित्य के विषय को अब उतने विस्तार जानने की प्रवृत्ति घटती अथवा प्रदूषित होती जा रही है फिर भी हमें अपनी मूल संस्कृति से जुड़े रहना है। यही भारतीय होने का गर्व है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने अस्तित्व को बनाये रख सकते हैं। साहित्य का अध्ययन न केवल ज्ञान वृद्धि के लिए संतुलित आहार है अपितु समृद्ध अतीत, वर्तमान और भविष्य को सार्थक करने का सर्वोतम साधन भी है। यद्यपि महामहोपाध्याय पं0 सुधाकर द्विवेदी जी ने स्वयं के विषय में कुछ भी नहीं लिखा और उनके सुपुत्र श्री पद्माकर जी ,जो कि उसी गवर्नमेंट कॉलेज में थे और पं0 सुधाकर जी की किताबें प्रकाशित भी कराई,किन्तु कुछ खास विवरण वर्तमान लेखको की तरह नहीं दिया,यहां तक की आदरणीय श्री कमलाकर द्विवेदी जी भी अनावश्यक प्रचार के पक्षधर नहीं रहे.जबकि आज बाजारीकरण के दौर में इसकी आवश्यकता है।
अतीतकाल में प्रकृति-देव आराधना के लिए भरपूर समय था उसके लिए सब कुछ मनुष्य कर लेता था। वर्तमान भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में अधिक व्यस्तता और आधुनिकता ने समाज को बोझिल कर दिया हैं। सामाजिक सौहार्द रुठ गया है हम अपना मूल स्वरुप खोते जा रहे हैं। हमारी प्रचलित रीतियां लुप्त होती जा रही हैं या नष्ट-प्राय हैं। हमें उनका
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