चंदेरी लहरी | Chanderii Laharii

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Chanderii Laharii by शांताराम आठवले - Shantaram Aathvale

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भाणनाथ राही मम मानसांत । रम्य मूर्ति प्राणनाथ ॥ करि विकसित हृद्य -सुमन हा वसन्त जीवनांत ! ॥ छळित परी विरह-रात । असुरासखम घोर ध्वान्त ॥ ने लयास जीवितेद्या अबला ही होत भ्रान्त ! ॥ राग पहाडी--ताल--विलंबित, एकताल, मात्रा १२ >< नी नौप घर्सा 5 नी धप रा ०० हदी ०० खस %० बघ 5 घ गप धनी धच इ ० म्य मू ७ ४७ ७ रति म गमप रे रे सासा क रि००्विकसिंत सारेग | _ ह वसारेंग सारेंगसा रे नी सां हा००० ००० वखस०्त ममम चघथ5$ छकळित परी«० घसा घसीरेंग सारेंगसा सा असुरा०००००० स भं म5परे5सा ने ० खछया० स अब ळ्छा[००० ००७० द्दी द्दो 6 )< गपधनी पनी थप गम मा००० ०५०४७ नसाँ०ः त पमचपगम प्राध्णनाव्य | मधधनीवसासा हृद॒यसु०्स न जीव«०्नाॉ०० टक ७४-४७ ३ त्‌ ॥घु०॥ ग | $ मधनीध सा5सा विरह्‌०्रा०्त रॅनीसांधगम घो०्रध्वांन्त म मधड5नीधसा जीविते०००्श नी सा ध पनीधप ग म क ।।१॥| ७ त श्रई०००० ७न्लह० अस्रत-मंथन




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