साहित्य - शिक्षा | Sahitya Shiksha

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पदुमळाळ बख्शी - Padumlal Bakhshi

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हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi

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समाञजकी अदालतपर असर नहीं डाल सकता । अदाल्तका' हृदय-परिवर्दन तभी संभव हे जब आप सत्त्यके तनिक-भी विसुखःन. हॉ, नद्दी तोः अदालतकी धारणा आपकी ओरसे खराब.हो जायगी और बह्द आपके खिलाफ फैसला सना देगी वह कहानी लिखता द्दे पर वास्तविकताका ध्यान रखते. हुए, मूर्ति बनाता है पर ऐसी कि उसमे सजीवता हो और भाव-व्यंजकंता भी,--वह भानव प्रक- तिका सूक्ष्म दृष्टिसि अवलोकन करता है, मनोविज्ञानका अध्ययन करता है और ट्रसका यत्न करता हे कि उसके पात्र हर हालतम और हर मौकेपर इस तरह आचारण करें, असे रक्त-मांसका बना भनुष्य करता ह । अपनी सहज सहालु- भ्ूति और सौन्दर्य-प्रेमके कारण वह जीवनके उन सृट्टम स्थानोंतक जा प्हँचता हव जह मनुष्य अपनी मसुप्यताके कारण पचनेम असमर्थ होता है ।- 2 (आधुनिक साहित्यम चस्तु-स्थिति-चित्रणकी प्रश्‍त्ति इतनी बदशही हैकि आजकी कहानी यथासंभव प्रत्यक्ष अलुमवोंकी सीमाके बाहर नहीं जाती । केवल इतना सोचनेसे ही संतोष नहीं होता कि मनोविशानकी दृष्टिसे ये सभी पात्र मनुष्यॉसे मिलते-जुलते . है, बह्कि, हम यह इत्मीनान चाहते ह कि ये सनचमुच 'मनुष्य है, और लेखकने यथासंभव उनका जीवन-चरित ही लिखा दै । क्‍योकि, .कल्पनाके गढे... हुए, आदमियोमें हमारा विश्वास नहीं है, उनके । काया और विचारॉसे हस प्रभावित नहीं होते । ह्म इसका निश्चय हो जाना नाहिए कि लेखंकनें जो सि की हे, वह प्रत्यक्ष अचुभवोके आधघारपर की हद और अपने पार्चोकी जबानसे वह खुद बोल रहा हद । . 'इसीलिए, . साहित्यको 'कुछ समालोचकोंने लेखकका. मनोवैज्ञानिक जीवन- नरित कहा है। ' एक ही घटनां'या स्थितिसे सभी मनुष्य 'संमान रूपे प्रभावित नहीं होते । हर आदमीकी मनोवूत्ति और दृष्टिकोण अलग'है ।'रचना-कोदाल इसीमेँ है कि छेखक जिस . मनोद्त्ति या दृष्टिकोणसे किसी -बातको देखे,-पाठक भी उसमे ' उससे सहमत :हो. जाय ।. यही उसकी सफलता है ।. इसके साथ ही हस ' साहित्यकारसे. यह भी, : आशा रंखते'ह कि वद्द अपनी ' बहुता और ..अपने 'चिचारोंकी विस्वतिसे हमें जाग्रत करे; हमारी दृष्टि तथा. मानसिक ' परिधिको शण




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