शाहजहाँ | Shahajan
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
16 MB
Total Pages :
161
Genre :
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(Click to expand)१३
स्पष्ट करके उसकी बोधह्दीन सरलतापर करुणाका उद्रेक कर देती है ।
द्विजेब्दलाल हास्यरसके प्रवीग् लेखक हँ । उनकी निर्मल परिहास-रसि--
कता एक हसीकी लहर या आमोदका बुलबुला बनकर ही तीन नहीं हो जाती ।-
उनकी हसीमें एक तीव्र श्लेष है जो हृदय-पटपर एक ग्रहरा निह:
छोड जाता है । पियारा जब 'शैरकी ताकत दॉतो्में, हाथीकी ताकत सॅडमे'
श्रादि उपमा दैनेके पश्चात् कहती हे कि *हिन्दुस्तानियोंकी ताकत पीठमें'
मौर जयसिंह जब कहते है कि “म औरंगजेबकी श्रधीनता स्वीकार कर सकता
ह मगर राजसिंहका प्रभुत्व नहीं मान सकता? और इसके उत्तरमें जब जख-.-
वन्तसिंदद पूछते हँ कि “क्यों राजासाहब, ये श्यपनी जातिके हॅ, इस्ीलिए १?
श्रौर पियारा जब कहती ह्दै कि 'में रिदहाई नहीं चाहती । सुभे यह गुलामी”
ही पस-द हे ।' तथा शुजा इसका उत्तर देता ह्वै “छेः पियारा, तुम हिन्दुस्ता-
निरयोसे भी नीच हो, * तब कौतुककी हसी ओठोमें ही मिल जाती है श्रौर
प्राण मानो एक तेज कोड्ेकी मारसे कॉप उठते है ।
इतिहासकी बात छोड देनेपर हम देखते हॅ कि शाहजहाँ नाटकके सभी
प्रधान-अ्रप्रधान चरित्र सुपरिस्फुटित हँ । परस्पर-विपरीत प्रकृतिके पात्रोकेः
चित्रोकी पास रखकर न!ट्यकारने एककी सहायतासे दूसरेकी उज्ज़ञवलताकी
बढाया हे । जथसिंहकी विश्वासघातकताके सामने दिछेरखाँका धर्मज्ञान,
जिहनखाकी नीचताके सामने शाहनवाजकी उदारता श्रौर जसवन्तचिंहकी-
खंकीांताके सामने महामार्याके मनका महत्त्व, ये सब बातें काल्ले परंदेपर..
सफेद रंगके चित्रक समान उज्ज्वल हो उठी है । उ
मरुभूमिमें प्याससे व्याकुल ख्तरी-पुनॉकी ्ासन्न एत्युकी द्राशकासे दाराका-
भगवानके निकट प्रार्थना करना, उसके थोड़ी ही देर पीछे गऊ चरानेवालोंका
श्याना श्रौर जल पिलांना, जयसिंहसे सैन्य न पाकर दुखी हुए सु्धेमानका
दिलेरखीसे सहायताकी भिक्षा माँगना थौर दिल्लेरखाँसे, जिसकी श्राग्र नहीं
थ्री, ऐसा तेजस्वी उत्तर मिलना कि “उठिए शाहज्ञादा साहब, राजा साहब न
द, मै हुक्म देता ट्र | मैने दाराका नमक खाया है । सुसलमानोंकी क्रौम
* हमारे पास षष्ठ संस्करणकी मूल पुस्तक है । उसमें यह वाक्य नही
हे । जान पडता हे, यह पहलेके संस्करणोमें रहा होगा, पीछे किसी कारणसे-
निकाल दिया गया है । उ
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