ललित संग्रह १, २, ३ | Lalitsangrah 1, 2, 3
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
30 MB
Total Pages :
184
Genre :
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रामजी धायाजी - Ramji Dhaayaaji
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(Click to expand)(१०)
नाथके दरबारये नोकर नहीं चाकर वही; तमाम मचाव
हो र्ला? उ०-महाराज, बंडा दरबार हे; सो गलबला चलत!
है. प्र०-आप कोणंहे ? उ०-हमतो भाढदार हे. प्र०्-कहांके
भाढदार? उ०-निर्शण निराकारके. प्र०-विशुण निराकार
किसे कहळादे ? उ०-जिल्ले नाम ना गाम ना ठाम, अख्य;
उसे निरण निराकार कहळछाते- ग्र०्“तुम कहा नोकरा ब-
नाई? उ०-दश अवतारमें. प्र०-कोणखे दश अवतार £
उ०-प्रच्छ, कच्छ, वऱ्हा, नरसिंह; वामन; परथराम) राम,
श्रीकृष्ण, बौध्य और कलंकी. ऐसे भगवानके दश अव-
तारमं नौकरी बनाई. प्र०-मच्छ अवतारमे कसी नोकरा
बनाई १ उ०-पसी नौकरी बनाई, जब संकासुरन, बह्ममक वद
चराके सग्द्रबीच छपाया, तब भगवाननें मच्छख्प धरके
उल्क मक्त करके बेद छडाया; फिर व्हांकी नौकरी छोड-
चृळले आये. प्र०्-कच्छ अवतारम केसी नोकरी बनाई :
उ०-कच्छ अवतारभें ऐसी नौकरी बनाई, जिसबखत स-
मद्र मंथन करके चौदा रत्न निकाल, उसवबखत ४ पात(-
ख्य जाने छगी: जद भगवाननें कच्छखप थरके सृष्टी पीठमर
घरदी व्हॉकी नौकरी छोड चले आये. प्र०-वऱ्हा अव
तारभें केसी नोकरी बनाई १ उ०-वर््ह्य अवतारम एखा न्
करी बनाई, जद धरती रसातळ जाने लगा; तब भगवान
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