ललित संग्रह १, २, ३ | Lalitsangrah 1, 2, 3

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Lalitsangrah 1, 2, 3 by गोविन्द मोरोबा - Govind Morobaरामजी धायाजी - Ramji Dhaayaaji

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रामजी धायाजी - Ramji Dhaayaaji

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(१०) नाथके दरबारये नोकर नहीं चाकर वही; तमाम मचाव हो र्ला? उ०-महाराज, बंडा दरबार हे; सो गलबला चलत! है. प्र०-आप कोणंहे ? उ०-हमतो भाढदार हे. प्र०्-कहांके भाढदार? उ०-निर्शण निराकारके. प्र०-विशुण निराकार किसे कहळादे ? उ०-जिल्ले नाम ना गाम ना ठाम, अख्य; उसे निरण निराकार कहळछाते- ग्र०्“तुम कहा नोकरा ब- नाई? उ०-दश अवतारमें. प्र०-कोणखे दश अवतार £ उ०-प्रच्छ, कच्छ, वऱ्हा, नरसिंह; वामन; परथराम) राम, श्रीकृष्ण, बौध्य और कलंकी. ऐसे भगवानके दश अव- तारमं नौकरी बनाई. प्र०-मच्छ अवतारमे कसी नोकरा बनाई १ उ०-पसी नौकरी बनाई, जब संकासुरन, बह्ममक वद चराके सग्द्रबीच छपाया, तब भगवाननें मच्छख्प धरके उल्क मक्त करके बेद छडाया; फिर व्हांकी नौकरी छोड- चृळले आये. प्र०्-कच्छ अवतारम केसी नोकरी बनाई : उ०-कच्छ अवतारभें ऐसी नौकरी बनाई, जिसबखत स- मद्र मंथन करके चौदा रत्न निकाल, उसवबखत ४ पात(- ख्य जाने छगी: जद भगवाननें कच्छखप थरके सृष्टी पीठमर घरदी व्हॉकी नौकरी छोड चले आये. प्र०-वऱ्हा अव तारभें केसी नोकरी बनाई १ उ०-वर्‍्ह्य अवतारम एखा न्‌ करी बनाई, जद धरती रसातळ जाने लगा; तब भगवान




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