कामसूत्र (भाग 7) | Kamasutra (Part 7)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| अर्थ- गणिका की पुत्री जब युवा हो जाए तो इसकी मां को अपनी तस्णी पुत्री के समान सुंदर, रुप, गुण, शौन तथा यौवन संपन्न युवकों को आमंत्रित करके यह घोषणा करे कि जो व्यक्ति कि जो युवक उसकी पुत्री को जरूरत की सभी वस्तुएं उपलब्ध करायेगा इसके साथ में अपनी पुत्री की शादी कर देंगी। इस तरह अपनी लड़की की शादी करके गणिका उसके चरित्र को बचा सकती है। ओक-14. सा च मातुरबिदिता नाम नागरिकपुत्रैर्धनिभिरत्यर्थ प्रीतेत।।14।। अर्थ- उस युवा वेश्या पुत्री को आये हुए प्रेमियों के साथ इस तरीके का प्रेम-व्यवहार प्रदर्शित करे मानों उसकी मां को इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। शोक-15. तेषां कलायहणे गंधर्यशालायां भिक्षुकीभवने तत्र तत्र च संदर्शनयोगाः।।15।। अर्थ- धनी लोगों, राजाओं या उच्च परिवार के युवक जब कला की शिक्षा लेने के लिए वेश्या के घर आये तो उनसे मिलने का अवसर अपनी तरुणी पुत्री को दे तथा वह लड़की अपने घर में मिलने के बाद गंधर्व शाला, भिक्षुक के घर जहां कहीं अवसर प्राप्त हों, उनसे भेट प्रेम | करती है। लोक-16, तेषां यथोक्तदायिनां माता पाणिं ग्राहयेत्।।16।। अर्थ- तरुणी वेश्या पुत्री का मां जिन चीजों की मांग करती है तथा जिससे वे बस्तुएं प्राप्त हों, | उसी के साथ अपनी पुत्री की शादी करें। लोक-17. तावदर्थमलभमाना तु स्वेनाप्येकदेशेन दुहित्र एतद्दतमनेनेति ब्यापयेत्।।17।। अर्थ- घोषित चीजें यदि निश्चित मात्रा में कोई न दे सके तो अपने ही धन की दिखाकर येश्यापुत्री की मां कहे कि यह पूरा धन मेरी बेटी को इसी व्यक्ति ने दिया है। ओक-18. डाया या कन्यामाद विमोचयेत्।।18।। अर्थ- देश्या को पाहिए कि जस उसकी कन्या बट्टी हो जाए तब उपर्युक्त विधि से युवक को फंसाकर उनसे अपनी तरुणी कन्या को सेक्स कराकर उसका कौमार्य भंग कराना चाहिए। लोक-19. प्रच्न वा तैः संयोज्य स्वयमजानती भूत्वा ततो विदितैबेतं धर्मस्थेषु निवेदयेत्।।191॥




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