हिंदी ऋग्वेद | Hindi Rigved

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Hindi Rigved by पं. रामगोविन्द त्रिवेदी - Pt. Ramgovind Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ सरस्वती की वैदिक आऊोचनाएं पढ़ने पर तो कभी-कभी यह सन्देह होने लगता हैं कि क्या ये भी मैकडानल के सहयोगी थे ? हमारे यहाँ चतुवद स्वामी ने भी फुछ अंग पर भाष्य लिखा हूँ । इन्होंने ऋग्वेद के एक ही मन्त्र प० १४०१४ से इतने विलक्षण अर्थ निकाले हूं--पुतना और कंस का बंध गोधद्ग-घारण और कौरव-पाण्डव-युद्ध श्रसिद्ध वेद-विद्यार्थी डा० वी० जी० रेछे ने पुफुट ४८ताट नाम की एक पुस्तक छिंखी है जिसमें उन्होंने समस्त देवत संज्ञाओं देव-नामों को द्रयथंक और नाचार्थक सिद्ध करने की चेष्टा की है परन्तु किसी भी ग्रन्थ का एक प्रतिपाद्य होता है एक उद्देक्य होता है। यह बात कोई भी नहीं कह सकता कि बादरायण ब्यास को वेदान्त- सुत्र की टंतवाद टेतादतवाद विशिष्टादतेवाद और विशुद्धाईत- वाद आदि की सभी व्याख्याएं अभीष्ट थीं । उन्हें तो केवल एक ही व्यास्या अभीष्ट रही होगी उनका एक ही प्रतिपाथ भभीष्ट रहा होगा फिर चाहे वह द्वैतवादी हो अद्वैतवादी हो या जो हो। इसी तरह मन्व-प्रणवा ऋषि को भी एक ही अर्थ अभीष्ट रहा होगा परत व्याध्याक।रों ने अपने उपयुक्त वा अनुपयुक्त मत की पुष्टि के लिए मनमाने अर्थ कर छाले हजारों वर्षो से एक दूसरे से दूसरा तीसरे से तीसरा चौथे से सुन- सुनकर वेद-मन्त्रों को कण्ठस्थ करते आते थे । इस तरह हजारों मखों और मस्तिष्कों से छनकर कुछ मन्व-पाठ और सन्न्ार्थ विकृत छो चले हैं । लिपिकारों की अज्ञता अल्पज्ञता प्रमाद पक्षपात आदि के कारण भी कई मन्त्र और उनके अर्थ विकृत हो गयेहे । ये ही कारण हें कि पद क्रम जटा माला शिखा लेखा ध्वजा दण्ड रथ और घन विछृत- वलली १.५ में आबद्ध करने पर भी अनेक वेद-मन्त्ों के पाठान्तर हो गये एक ही मन्त्र दो-एक शब्द इधर-उधर करके दुबारा छिखा गया और भरने मन्तों के शब्द इतने विकृत हो गये कि उनका पाठ और श्रथ-ज्ञान दुर्बोध और भज्ञेय हो रहे । वेद-मनतों के कुछ ऐसे दाब्द हूं जिनका अधे-जान नहीं होता । ऐसे शब्दों का परिगणन निघण्ट में किया गया ह। कुछ ऐसे याब्द हूं जिनका भथे ढूँढ़-डॉढ़कर घात्वथ या चविछृत रूप से या वाक्य में स्थान देखकर अथवा जिन वाक्यों में उनका प्रयोग हूं उनकी तुख्मा करके निश्चित किया जा सकता हू । परन्तु वे दाब्दों का एक बड़ा समूटट ऐसा है जिसका भर्थ निश्चित रूप से ज्ञात होता है अथवा जिसका भर्थ निवंचन के अनुसार किया जा सकता हूं। बहुत से ऐसे वैदिक




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