हिंदी रसगंगाधर भाग - ३ | Hindi Rasagangadhar Vol. 3

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Hindi Rasagangadhar  Vol. 3 by श्रीपुरुषोत्तम शर्मा चतुर्वेदी - Shree Purushottam Sharma Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) इतना बढ़ा प्रंथ खरीदते, श्र: यहाँ उसका उचित संक्षेप ही दिया ना रहा है। पाठक इसीसे संतोष करें । बह प्रंथ “भारतीय साहित्य> समीक्षा” श्रथवा ऐसे ही श्रन्य किसी नाम से प्रथक्‌ प्रकाशित किया जाय ऐसा विचार है । श्रागे जेसी भगवदिच्छा । अंत में मार्मिक विद्वानों वे निवेदन है कि--इस श्रनुवाद का श्रघिकांश मेरी रुग्णावत्था में लिखा गया है । उसकी मुद्रयालयो चित प्रतिलिपि भी श्रन्यों श्रौर प्रायः श्रनमिद्ों द्वारा ही को गई है। झफ- संशोधन यद्यपि मैंने ही किया है, -पर वह भी रुग्यावस्था में ही, श्रतः यदि झुद्धिपत्र दे देने पर भी कहीं श्रयुद्धियाँ श्रथवा भ्रम रह गया हो तो कृपा कर संशोधित कर लें श्रोर संभव दो तो मुझे भी सूचित करें, जेवा कि श्रीमथुरानाथनी भट्ट ने 'रोषोदयो व्यंग्य: के स्थान में श्रशुद्ध मुद्रित 'रोषादयों व्यंग्या:* के श्रनुवाद के विषय में लिखा है, लिसे द्वितीय संस्करण में शुद्ध कर दिया गया है । इस काय में श्रनेक लेखकों ने द्रव्य लेकर तथा कई मेरे शिष्यादि ने बिना द्रव्य भी प्रतिलिपि श्रौर श्रुतलेख में सहायता की है उन सबका में हृदय से कृतज्ञ हूँ । उनमें से श्री पं० दामोदर भा सादित्याचाय, पं० श्री रामावतार पांडेय श्रायुवंदाचाय श्रौर पं० श्री दीरामणि थी व्याकरशाचाय विशेष स्मरणीय हें । ग्रंथ की समाप्ति के समय मेरे प्रिय शिष्य काशीनरेश श्रीविभूति- नारायणुतिंद थी को तो केसे भुलाया जा सकता है, लिनके झुमाशय शोर प्रेमबश ही यह कार्य श्राज समाप्त हो रहा है । भगवान्‌ थी कृष्ण उन्हें सबदा सुखी रखें । रामनगर ( वाराणसी सांस झक्षय तृतीया २०१५ बसपा ह पुरुपोत्तमशर्मा ं




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