आयुर्वेद का वैज्ञानिक इतिहास | Ayurveda Ka Vaijnanika Itihasa

Ayurveda Ka Vaijnanika Itihasa by प्रियव्रत शर्मा - Priyavrat Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) मददाप्राण आयुवेद कक फिर भी अपने आप में यह विस्मय का विषय है कि जब विश्व की सभी प्राचीन चिकित्सापद्धतियाँ समाप्तप्राय हो गई आयुर्वेद आज भी हजारों वर्ष पुरानी नींव पर खड़ा ८० प्रतिशत भारतीय जनता की सेवा कर रहा हैं । अनु- सन्धायकों के लिए भी यह गवेषणा का विषय है कि आयुर्वेद की इस महाप्राणता का रहस्य क्या है ? बीच बीच में भयानक तूफान आये, इसे दफना देने की कोद्िश की गई किन्तु यह ऐसा वद्ज निकला कि मरने को तंयार ही नहीं । हिन्दू राजाओं ने इसे संरक्षण दिया तो मुगल बादझ्षाहों ने भी इसे अपना कर गुणप्राहिता का परिचय दिया । अंगरेजों ने भी इसे निरथक समझ नष्ट करने की योजना बनाई किन्तु उन्हींके मनीषी दूतों ने इसका गुणगान प्रारम्भ कर दिया और क्रमश: इसने अपना प्रसार प्रारम्भ किया जो अब तक चला आ रहा है । प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वेद्यों की नैतिक विजय का कारण रहा आयुर्वेद का वैज्ञानिक उत्कष॑ और उस पर आधारित इनका चिकित्सकौशल । अदुम्नुत चिकित्साकौशल के कारण वेद्यों को सर्वत्र और सवंदा सम्मान मिला । यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आयुर्वेद को राजकीय प्रश्रय दिलाने में वेद्यों का बेयक्तिक प्रभाव सदा आगे रहा है। भारत सरकार का सर्वोच्च चिकित्साधिकारी जेनरल पार्डी त्युकिसि कलकत्ता के कविराज विययरत्न सेन से अत्यन्त प्रभावित था जिसके फलस्वरूप उसने आयुर्वेद की उन्नति का मा प्रदास्त किया । विभिन्न प्रदेशों में भी ऐसा ही हुआ । निरन्तर प्रगति लोकसेवा पर वेद्यों का ध्यान बराबर रहा अतएव निरन्तर उसे समुन्नत करने की चेष्टा रखते आये । अनुभवों के द्वारा जो नया योग सफल प्रमाणित होता उसे ग्रन्थ में निबद्ध कर प्रकाशित करते । विदेशियों के माध्यम से भी यदि कोई नया द्रव्य या उपचार मिलता तो उसे अपना लेत । अहिफिन, चोपचीनी आदि का समावेश ऐसे ही हुआ । इसलिए चाहे राजनीतिक स्थिति जो भी हो, आयुर्वेद के क्षेत्र में सजनात्मक काय॑ निरन्तर होता रहा । ऐसा कोई भी काल नहीं दीखता जब यह काय अवरुद्ध हुआ हो । परंपरा में जो नवीन तथ्य स्वीकृत होते वे ग्रन्थ में निबद्ध हो जाते । इस प्रकार समय समय पर नवीन ग्रन्थ प्रकाश में आते रहे । आधुनिक काल के प्रारम्भ में तो यह प्रवृत्ति बनी रही किन्तु आगे चल कर प्रतिक्रियावाद ने जोर पकड़ा । परिणाम यह हुआ कि कुछ लोग पीछे की ओर भागने लगे और कुछ लोग आगे की ओर । इसी रस्साकशी या विवत्त में अभी आयुर्वेद पड़ा है । आष प्रवृत्ति सदा प्रगति की पक्षपातिनी रही है। इतिहास के अध्ययन से




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