आयुर्वेद का इतिहास | Ayurved Ka Itihas

Ayurved Ka Itihas by कविराज सुरम्चंद्र - Kaviraj Suramchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० आयुर्वेद का इतिहास _ द्वितीय विद्यमान होनें से श्रायुवेद के भ्रन्य भ्रद्ध भी तब उपलब्ध थे यह स्वत सिद्ध है। स्चेज्ञानवित्‌ ब्रह्मा--समस्त प्राचीन शास्त्रों में ब्रह्मा जी को सवेज्ञानमय कहा है । सब बैज्ञातिक तथा दाषंनिक शास्त्र इस विषय को प्रमाशित करते हे कि इस सृष्टि में स्वेप्रथम ब्रह्माजी द्वारा ज्ञान का प्रकाश हुभ्रा । ब्रह्माजी ने चारो वेदो के श्रतिरिक्त श्रायुवेद व्याकरण-दास्त्र ज्योतिष-दास्त्र नाट्य- दास्त्र ब्रह्मज्ञान धनुर्वेद पदार्थ विज्ञान राजनीति-शास्त्र श्रदवदयास्त्र हस्ति- शास्त्र वृक्ष-आ्रायुर्वेद श्रादि श्रनेक प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान ससार को दिया । इनका विस्तृत वरुंन प्राचीन इतिहास विशेषज्ञ श्री प० भगवदत्त कृत भारत- वर्ष का बृहदु इतिहास भाग द्वितीय श्रध्याय तृतीय में देखे । प्रजोत्पादन से पूर्व आयुर्वेदोपदेश --सुश्रुत तथा काइ्यपसहिता के पु्वे- लिखित प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्रजाश की उत्पत्ति से पूर्व जब न रोग था न रोगी तब निदान श्र चिकित्सा सहित समस्त श्रायुवेद के ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ्ना । विकासमत की भित्ति पर स्थित व्तेमान चिकित्सा पद्धति को यह एक भारी चुनौगी है । सुश्रुत ही नहीं परन्तु ग्रनेक ग्रार्ष-ग्रत्थो से इस ऐतिहासिक सत्य को प्रमाणित किया जा सकता हें कि रोगों का निदान आर चिकित्सा का ज्ञान रोगो की उत्पत्ति से पूर्वे मिल चुका था । यह बात न्रिकाल ज्ञान के कारण हुई । ऐलोपेथी की श्रपूणंता--ऐलोपैथी गत दो-तीन सौ वर्ष में प्रायः श्रधूरे भ्रनुभवों के श्राधार पर खडी हुई हूं। इसके सिद्धान्त श्रभी तक निश्चित नहीं हो सके । विकासमत की भित्ति पर खडे होने के कारण इसमे श्राए दिन परि- वतन हो रहे है श्रौर होते रहेंगे | श्रायुर्वेद के मूल सिद्धान्त निर्धान्त-सत्य पर श्राश्रित होने के कारण श्रादि- सुष्टि से राज तक अझ्परिवत्तित हे। इसी कारण गत कई सौ वर्षों की भया- नक विघ्न-बाधघाश के होने पर भी श्रायुर्वेद ससार का उपकार कर रहा हूं 1 ग्रन्थ नास--भावप्रकाद मे भावमिश्र लिखता है-- विधाता5थवंसबंस्वमायुर्वेद॑ प्रकाशयन्‌ । स्वनाम्ना संदितां चक्रे लत्रइलोकमयीसजुम्‌। ११॥। भ्रथात्‌--विधाता की सहिता का नाम ब्रह्सहिता था । त्रह्मतन्त्र की दो शाखाए --ग्रायुवेंद का ज्ञान ब्रह्मा ने दक्ष श्र भास्कर को दिया । दक्ष की परम्परा में सिद्धान्त का प्राधान्य था तथा भास्कर की परम्परा में व्याधिनाद श्रर्थात्‌ चिंकित्सा-पद्धति का । चिकित्सापद्धति का उल्लेख हुम यथा-स्थान करते जाएगे ।




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