हिंदी त्रिग्वेद | Hindi Trigved

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ 9) दाव्द हूं, जिनका अर्थ परम्परा से प्राप्त है। परम्परा से प्राप्त शर्थे अत्यन्त प्रामाणिक माना जाता ह। थास्क ने तीन ऐसे साधन बताये हें, जिनसे मन्वों का अथ जाना जा सकता है--१ भाचार्यों से परम्परया सुने हुए जान-ग्रन्थ, २ तर्क सौर ३ गम्भीर मनन । तके का तात्पयं हे बेदान्त-दर्शन आदि से । वेदान्त- सुत्र के अपने भाष्य में शंकराचायें ने इन साधनों से अनेक मन्त्रों का किया भी हू। इसमें सत्देह नह्दीं कि ब्नाह्मण-ग्रन्य, निसक्त, प्राति-शाख्य, कल्पसुभर मादि की सहायता से बहुत कुछ मन्त्राथं मौलिक रूप में सुरक्षित ह। गम्भीर मनन, प्रकरण, प्रसंग और वेदाथ करनेवाले प्राचीन-परम्परा- प्राप्त आधार-ग्रन्यों से असन्दिग्घ अर्थ-निर्णय किया जा सकता है। 'अमर- कोप' रटनेवालें छात्र को भी तनूनपात, जातवेदस , वैइवानर आदि वेदिक दाच्दों का 'अग्नि' अथे परम्परया ज्ञात हो जाता है। उपनिषद्‌ , आरण्यक, पुराण, धर्म-दास्त्र आदि परम्परा-प्राप्त अथें. के आधार हूं; इसलिए वेदार्थ करते समय इन सबसे भी सहायता लेनी चाहिए । परम्परा-गत अयथं को छोड़कर केवल अर्थ करना यथेष्ट भयावह है | गौ का यौगिक सर्थ हूं चलनेवाला । परन्तु यदि किसी चलनेवालें मनष्य को गी कहा जाय तो वह युद्ध ठान चैठेगा ! इसी से कहा गया है--''रूढ़ियोँ- गादू वलीयसी गर्थात यौगिक, वाच्यारथ, व्युत्पत्तिन्लम्य मर्थ से रूढ़, प्रचलित और स्वीकृत अर्थ बलवत्तर है । इसलिए फेवल यौगिक अर्थ का अनुधावन करना अनुपयुक्त हूं। भाष्यकार सायणय चेद-माप्यकारों में सायण थे । थे विजयनगर फे राजा वुक्क (प्रथम), संगम (द्वितीय) सौर हरिहर (तुतीय) के मन्यी थे। उन्होंने चम्प-नरेन्द्र को पराजित किया था । सायण १४ वों घती में थे और ७२ वर्प की अवस्या में स्वर्गवासी हुए थे । उन्होंने मनेक उद्मट विद्वानों के सहयोग से चारों वेदों की संहितामों पर महत्त्व-पूर्ण माप्य लिखा था। उनके प्रधान सहयोगी नर्हरि सोमयाजी, नारायण वाज- पेययाजी और पंढरी दीक्षित थे। सबसे पहुलें सायण ने क्ृप्णवजुवद की तैत्तिरीय-संहिता पर माप्य लिया । पपचात क्ग्येद (दाकलनसंहिता ) . झुवल यजुघद सामयेट (फौयससंद्िता ) और (थोनकसंहिता) पर साध्य दिंगा। सायय ने के प्रसिद्ध द्राद्यण-यन्यों,




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