हिंदी पद संग्रह | Hindi Pad Sangrah

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Hindi Pad Sangrah by कबीरदास - Kabirdasश्री सूरदास जी - Shri Surdas Ji

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कबीरदास - Kabirdas

कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह

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श्री सूरदास जी - Shri Surdas Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ श्रादिनाथ के स्तवन के रूप में लिखा हुश्रा इनका एक पद बहुत सुन्दर एव परिष्कृत भाषा में है । इसी तरदद १६ वीं शताब्दी में होने बातें छीहल, पूनो, बूचराज, श्रादि कवियों के पट भी उोखनीय हैं। प्रम्तुत सप्रद में हमने सबत्‌ १६०० से लेकर १६०० तक दोने वाले कवियों के पदों का सम्रह्न किया है | वैसे तो इन २०० नमो में सैकहों दी जैन कवि हुये हैं लिन्दोंने दिन्दी में पद साहित्य लिखा है | श्रमी इमने राजस्थान के शात्न भरडार्रा की अ थ सूची चतुर्थ भाग में जिन ग्र थों की स॒ची दी हे उनमें २४० से भी श्रधिक जैन कवियों के पद उपलब्ध हुये हैं क्न्तु पद सदर में लिन कवियों के पर्दों का सक्लन किया गया है वे श्रपने युग के प्रति- निधि कवि हैं । इन कबियो ने देश में आध्यात्मिक एव साइिस्यिक चेतना को लात किया था श्रीर उसके प्रचार में श्रपना पूरा योग दिया था | १४वीं शताब्दी में श्रीर इसके पश्चात्‌ हिन्दी जैन साहित्य में श्रष्यात्मवाद्‌ की नो लद्दर दौड गयी थी इस लद्दर के प्रमुख प्रवर्तक हैं कविवर रूपचन्द एव बनारसीदास । इन दोनों के सादित्य ने समाज में जादू का कार्य क्या | इनके पश्चात्‌ होने वाले श्रधिकाश कवियों ने श्रष्यात्म एव भफक धारा में श्रपने पद साहित्य को प्रवाहित किया | भक्ति एव व्षध्यात्म का यह क्रम श६वीं शताब्दी तक उछी रूप में श्रयवा कुछ २ रूप परिवर्तन के साथ चजता रह्दा | १ बी महावीरनी चेतर के जैन खाद्य संपदा या भी मद्दावीरजी क्षेत्र के जैन साहित्य शोध सस्थान की श्रोर से प्रकाशित




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