लोक साहित्य की भूमिका | Lok Sahitya Ki Bhumika

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Lok Sahitya Ki Bhumika by कृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ विशेषताएँ- १ रचयिता का अशात २ प्रामाणिक मूल पाठ का श्रमाव २ संगीत तथा नृत्य का श्रभिन्न साइचय ४ स्थानीयता का प्रचुर पुट ५0 मौखिक प्रदृत्ति ६ उपदेशास्मक प्रदत्त का श्रभाव ७ श्रलकृत शैली की श्विद्यमानता तथा स्वाभाविक प्रचाइ ८ स्चयिता के ल्यक्तित्व का श्रभाव ६ लम्बा कथानक १० टेक पदों की पुनरावृत्ति--मदत्त्व वणंन - रिफ्रेन श्रौर कोरस में झन्तर इन तीनों के उदाइरण साहित्य से उदाइस्ण गुजराती उदाहरण कोरस टेक पदों का वर्गीकरण | प०्न-१०४ अध्याय ६--ज्ञोक-गाथाओं की उत्पत्ति विभिन्न मत १ ग्रिम का सिद्धान्त--समुदायवाद प्रिम के मत का खणडन २ श्लेगल का सिद्धान्त--ब्यक्तिवाद २ स्टेन्पुल्ल का सिद्धान्त--जातिवाद ४ विशप पर्सी का सिद्धान्त--चार्णवाद ५ चाइल्ड का सिद्धान्त-- व्यक्तित्वद्दीन व्यक्तिवाद ६ ढा० उपाध्याय का सिद्धान्त- समन्वयवाद। १०५.-११४ अध्याय ७--ज्ोक-गाथाओं के प्रकार १ ढा० उपाध्याय का वर्गीकिरश-- क प्रेम-कथात्मक गाथा ख वीर-कथात्मक गाथा ग रोमांच-कथात्मक गाथा २ प्रोफेसर कीट्रीज का वर्गीगरण ३ प्रोफेसर यूमर का वर्गीकरण क प्राचीनतम गायथाएँ ख कौटुम्बिक याथाएँ ग श्रलौकिक गायाएँ घ पौराणिक गायाएँ ड सीमान्त गाधाएँ व श्रारण्यक गाथाएँ । ११६--१२३ कथाओं का विश्लेपसू क लोक-कप्रातों की प्राचीन परम्परा- इदत्कथा कथा सरित्ठागुर पंचतंत्र हिंतोपदेश वैताल पचबविशतिका शुक शसति जातक | स लोक-कधाशओं का वर्गीकरण--प्राचीन वर्गीकरण लोक-कथांत्ों के अ्कार ९ उपदेश कंथा २ न्त कथा हज




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