लोक साहित्य विमर्श | Lok Sahitya Vimarsh

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Lok Sahitya Vimarsh by डॉ. स्वर्णलता - Dr. Swranalata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 लीक साहित्य और निष्ट साहित्य चौक साहित्य म प्रस्फुटित -ए हैं उतने शिष्ट माहित्य में नहीं। जितने विभिन्न रहस्यमय तथ्य वहाँ छत हैं हृदय का जितना प्रसार भर अभिव्यजन जितना भावन श्र चवण लाक साहित्य म दुध्ला है, उतना श्रय नही 1 हमारी সাপো বা ब्रहृ चुरातन आन दलोक मे पहुँचान वी सर्वाधिक शक्ति लोक साहित्य मे ही ह1 भाषा के प्रारम्भिक घनाय बारे टमित्व नहीं चे-वे जीत जागत स्त्री और पुरुष से जो थद च्वनि श्रौर श्रय की परवाह न দই श्रपते भावा की श्रमिव्यक्ति विभिन्न वाणी वे ऋूप मे माना शब्टी का গত তা সী গান मनात थे । लोक साहित्य श्ौर साहित्यिक कविता में शब्ट और झथ विपयक मुल्य भेद सह है वि लाव' साहित्य मं शक” पअ्रथ के विय पदा हाता है और शब्” वे रुप वे अनुसार ही भीघा प्रथ लिया जाता है. परतु साहित्यिक कविता में शद स भय तिकाव जाते हैं, भर्धा[ सीधे एव रूप म शब्ट प्रयाग न बरते अभिधा लक्षणा शोर ज्यजना शब्द शक्षितया वे बल से एवं शब्” से अनत भ्रय निवालन की वेष्टा कलाकार का गुर মানা जया है? यदथ्यवि स्वाभाविव' म्पस प्रयुक्त शाला में लाक साहित्य मे भी कही-वही लक्षणा व्यजना शक्तियां वे गुण उत्पन्न हा जात है. परन्तु लाक कवि की उह्ं श्य सिद्धि निमित्त एक शब्ठ का एवं ही भ्रथ भ्रमीप्ट होता है । ताक साहित्य मूत मल्पनाप्ना के प्राधारपर ही चित्रित होतीह परतु सारित्यितर कविता मे ग्रमूत बल्पनाओो को विशेष स्थान प्राप्त है ! लोक साहित्य से सहज प्रभियक्ति होते के कारण लोत' कराकार का ध्यान उक्ति वविष्य की घोर আপা हो नहीं। उसे प्रभिय्ति दी प्रेरणा जीवन वे स्पदना से मिलता है. उप्तप उपयाणिता अनुपयाणिता का कोई दिचार ही नहीं। इस प्रभि यक्ति स उक्त तत्वा की मर्याश प्रतिष्ठित होती है भ्रौर जन मानस रुचि और शली को प्रपनी उसी सहज मर्यादा से निश्चित करके प्रकट कर देता है 1 विषयगत नेर--शिष्ट सा्टित्य मे रवनों वा विषय उसके उद्दे श्य से निधारित हाता टै! दाणनिक, सामाजिक ग्राष्यामिव सास्‍्कृतिक विचार पारा का जन অমৃত तक पहुचान हतु सादित्य कौ रचना हानी ह्‌ । আনত प्रपनी रुच्यनुवूत क्षेत्र म वविचारात्यप कर्खे साहित्यकार जनहित राष्टरहित पभ्रथवा स्वाथलाभ कौ इष्टि 1 दषफम्ड परमम्‌ श्रो स्पीच वर मौट टनिटन बोइ रप, बट लिवली मैन एण्ट चीमन विवलिग एण्” सियिग मैरिली श्रौर फौर द मीयर प्लजर आफ प्राह्ण जिग साउरुस बिल झौर विटाउट मीनिग्स एज एन इन्स्ट्र, मैट ऑफ एकस्प्र सिग थाटस | सलग्वज एण्ड रीमविटा--म्ररवन 2 व्रज लाक्रसहित्य-षृष्ठ 543 হা? হই




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