तपोभूमि उत्तराखंड | tapobhumi Uttarakhand

tapobhumi Uttarakhand by रणधीर सिंह - Randhir Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १८,) सहदेव को छोड़कर शेष भाइयों और एक कुत्ते के सा दुन्ती कुमार युधिण्ठिर आगे बढ़ रहे थे तो सहदेव के शोक. आते होकर शुरवीर नकुल भी गिर गये । तो भीमसेन ने पुन राजा से प्रश्न किया--“भाई ! जिसने कभी शी अपने धर्म ३ नुटि नहीं आने दी वह हमारा प्रिय नकुल क्यों पृथ्वी पर यिर। है ?” राजा ने नकुल के विषय में कहा--“नकुल के मन में यह वात बैठी रहती थी कि मेरे समान रूपवान कोई नहीं है, इस लिए नकुल नीचे गिरा है। तुम आओ वीर ! जिसकी जैसी करनी है, वह उसका फल अवश्य भोगता है । कुछ और आगे चलकर तेजस्वी वीर अजुन जब पव॑त पर गिर कर प्राण त्याग करने लगे, तब भीमसेन ने फिर युधिण्ठिर से पुछा--“राजन ! अजुंन कभी परिहास में भी झूठ बोले हों- ऐसा मुझे याद नहीं आता । फिर ये किस कर्म का फल है, जिससे इन्हें पृथ्वी पर गिरना पड़ा ?” :'अजुं न को अपनी शुरता का अभिमान था ।” यों कह राजा युधिष्ठिर आगे बढ़े ही थे कि इतने में भीमसेन गिर पड़े । गिरते के साथ ही भीम ने धर्मराज युधिष्ठिर को पुकार कर कहा-- “जरा मेरी ओर तो देखिए, मैं यहाँ पर गिर गया हूँ । यदि आप जानते हों तो बताइए कि मेरे पतन का कारण क्या है ?” युधिष्ठिर ने कहा--“भीम ! तुम बहुत खाते थे और दुसरों को कुछ भी न समझ कर अपने बल की डींग मारते थे, इसीलिए तुम्हें धराशायी होना पड़ा है ।” ज इस प्रकार क्रमश: सभी भाइयों के गिर जाने पर युधिष्ठिर असहाय और एकाकी होकर इन्हीं हिमालय पर्वत के हिमावृत, महाविकट, अति कठिन हिमाद्रि शव गों पर, का मनुप्य की नहीं अपितु प्राणी मात्र की यात्रा निरुद्ध है--बिना पीछे को ओर देखे, आगे ही आगे प्रयाण करते रहे ।




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