मै क्रांतिकारी कैसे बना | Main Karanti Kari Kese Bana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ 1 भारत की पुलिस इन वातों में बड़ी अस्यस्त हैं। उस का यह दैनिक व्यापार है ।ऐसी घटनाय केवल एक या दे जगह ही नहीं हुई बरन सब जगहों को पुलिस एक ही सांचे की ढढी है। सहारनपुर घौर शादजहांपुर में भी यहीं हाठत थी। काशी विद्यापीठमें एक विद्यार्थी केवल इस लिये गिरफ्तार क्या गया ईकि सेठ दामोदर स्वरूप की हाजिरी देखते समय वह भी उक्त अटनाके दिन गैर हाजिर था । यह सब इसलिये हो रहा था कि जिस श्रकार हो सके हर तरह की युक्तियुक्त अथवा निस्सार बातें छामियुवतां के बारे में मालूम की जांय गढ़ ली जांय 1. स्वैर ये दिन भी बीत गये । सेशन कोर्टमें स्पेशल जज श्री देमि- रन साहब की इजलासमें मामला शुरू हुआ । उस दिन २१ मई थी । लगातार १ वर्षा तक मुकदमा चलता रहा | अभियुक्त चेचारों के लिये १ साठ तो टलुहापन्थी में ही जेल हो गई । सर कार की घोर से झभियुक्ताक लिये पं० हरकरणनाथ मिश्र चकील नियुक्त हुए झौर सरकारके पक्षमें पं० जगतनारायण सुल्ठा तैनात किये गये । उन्होंने बाकायदा १ साठ तक ५०० रु० रोजाना गवर्नमेण्ट की जेबसे निकाले । पाठक देख ले कि पं० जगतनारायण मुल्ला के प्रतिरोध में झ्रकेले मिश्र जी को घ्मियुक्तोंकी शोर से नियुक्त करना किस श्रेणी का न्याय है कुछ भी हो पं० जगतलारायण मुस्ला ने तो सरकार बहादुर से एक लाख से झधिक पुजवाया । खैर भाई गुरोव के भी राम है यहां पं० हरकरननाथ मिध्के झतिरिक्त झ्भियुक्तों की झोर से कलकत्त के मि० यौधघरी लखनऊके श्री मोहनलाल सक्सेना श्री० चन्द्रभाल शुप्त श्री हलेजा आदि चकील थे । इन्होंने चड्ी उदारता लगन त्याग झऔर तत्परता के साथ चकालत की । सेशन-कोर्ट में झभियुक्त श्पनी सफाई में बहुत त से गवाह पेश करना चाहते थे । किन्दु बादसें यद तय छुझमा




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