भारतीय वास्तु शास्त्र हिंदू प्रसाद | Bharatiy Vastu Shastr Hindu Prasad
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.92 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३४
है श्रौर उसी 'व्तेल' से दो चलुरभीकरग' प्रतिफलित होता दे । चठरकाफार नियामक दे
श्रौर उदीपमान जीवन का प्रतीक ई श्रोर सृत्यु के याद भी जौवन को पृरणता ।
“चतुरुश्र' श्री 'चतुल य॑ दोनों ही कार वेटिक (ता) से
श्राये हैं श्रौर भारतीय स्थापत्य के मूलाधार् श्राकार वन गये हूं । प्राचीन-दणा-शाला यी तीन
चेंदिकाओं [ मध्य में रेखा ( प्राचीन वश पर स्थित दो, श्यौर एक द
रेखा पर ] से हम परिचित ही हैं। इनसे पृव-पड्चिस वाली बेदिंगायों मे से
पूर्व-कणिस्था वेदिका चद्रश्ना होती है शरीर पश्चिमकॉणुश्या वेदिचा यतला । चतुर्थ
पर 'श्राइवनोय” श्रर्नि तथा चतेला पर गाइपत्य द्वर्नि प्रच्ज्यलित होती है । तीसरी चेदी
सी श्रर्नि का नाम दन्तिणाग्ति दे। इस तीनों के श्राधिराज्य क्रमशः यीः, प्रथियी एव
हैं ( शा० मा० दादण ४. ) | यशशाला ( विशेषषर-सोमादि यर्जो में ) में श्रन्य
श्रनेक वेदियाँ पिनिर्मित होती ई जिनकी प्राय: सभी की श्याकृतियाँ होती हैं -
उत्तर-त्रेदी ( जो सर्यप्रधान बेटी है ) एवं श्ाइवनीय श्रर्नि थी वेदिफा वी तो श्राति
चनुरश्रा दे दी उ० वे० की 'नामिर एवं 'उसा” की भी चष्टी श्राकृति सोती
श्रथच इन सभी नेस्थिक यों की वेदियों ( श्रारचनीप, एव
एव नेमित्तिक ( सोमादि ) की वेदियों ( मद्दावेदी या तथा उस पर उत्तर-वेदी
श्रादि ) की निर्मिति, श्राऊुति एव प्रयोलन सभी प्राठाद-निर्माण के लिये मूगाधार प्रदान
करते ईैं। वैटिक परम्परा में वेदी प्रथिवी के प्रयुल विस्तार का प्रतीक है, यडीय व मेयर रेड
की ते। चर झेत्रमात है । इसकी श्राकृति वदलनी रटती ई । सीमित वा यह
मात्र दे न कि निश्चित श्राकृति । श घ्ा० ( सप्तम -१-२७ ) का प्रवचन फि- वेद
पृथ्वी है शोर न्तर्वेदी यो.--फितना संगत दे |
हिन्दू प्रासाद की प्रृप्ट-भूमि में यह वेदिफी चनुरश्ना चेदी हूं पायन झुब्र प्रदान बारह
दे। ्रथियी का चदुल रूप तिंरदित ऐकर थी. की पू्ता में परिगतत हो जाता है । ध्रतएय;
उसी पूणता के प्रतीक्त्य मे उस चतुरभा परिकल्पित पिया जाता है । चतुस्थ्रा बेदी एप
चर्तुला प्रथियी का श्न्योन्य तादाह्म्य इसी सर्म का प्रतिप।टक |
द्रपच यागोपलाकशिक एवं प्रासाद वास्तुक पुन नाना प'्रापरिं में
परिवर्तित टोता ईै। यद परिणितिं एक्माव वास्तु शात्रीय परम्पस सी नारी जिएंगे एस से
लगाफर ३२ तक (दे० मानसार ) के चास्तुदों की नानाजृति-निर्निति प्रत्तिपादित
सूख साहित्य ( दे० वीघारन शल्वनयूध धघ्रादि 3 में भी यह परस्पर पित पर जुरी थी ।
प्रत्त॒, रस सम्बन्ध में कपन पप्रासाद-दात्त--जन्स एयं दिवस!
नामक फे श्प्पाय में शिया जायेगा, परन्त सदिक ये दिनस्वनो के प्रतिपादक घाल्यसूयों
(सो कल्प-पूर्पों फे हो श्ययान्तर पुर हैं ) में चर्पित नाना ( ऐप्स यश वे दि )
पर ऊछ पिशेष रेत यहां प्रायइपक है । या० श्राचायं ( देन से ८. प. 2 9 63 3
उाफ ही लिफते ई :-- प&८ 0 एलहट पा, १५101 घट
धर पट ध0फ्र2-5101106. इट्टाए5 10 1 एप 9 93९९४ 00
वाएँ भूत फाप995 चिट फाट्प्पाइएा (है
९1 0४८०७० ८ 0६ पिएं ४1. (010
User Reviews
No Reviews | Add Yours...