भारतीय वास्तु शास्त्र हिंदू प्रसाद | Bharatiy Vastu Shastr Hindu Prasad

Bharatiy Vastu Shastr Hindu Prasad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३४ है श्रौर उसी 'व्तेल' से दो चलुरभीकरग' प्रतिफलित होता दे । चठरकाफार नियामक दे श्रौर उदीपमान जीवन का प्रतीक ई श्रोर सृत्यु के याद भी जौवन को पृरणता । “चतुरुश्र' श्री 'चतुल य॑ दोनों ही कार वेटिक (ता) से श्राये हैं श्रौर भारतीय स्थापत्य के मूलाधार्‌ श्राकार वन गये हूं । प्राचीन-दणा-शाला यी तीन चेंदिकाओं [ मध्य में रेखा ( प्राचीन वश पर स्थित दो, श्यौर एक द रेखा पर ] से हम परिचित ही हैं। इनसे पृव-पड्चिस वाली बेदिंगायों मे से पूर्व-कणिस्था वेदिका चद्रश्ना होती है शरीर पश्चिमकॉणुश्या वेदिचा यतला । चतुर्थ पर 'श्राइवनोय” श्रर्नि तथा चतेला पर गाइपत्य द्वर्नि प्रच्ज्यलित होती है । तीसरी चेदी सी श्रर्नि का नाम दन्तिणाग्ति दे। इस तीनों के श्राधिराज्य क्रमशः यीः, प्रथियी एव हैं ( शा० मा० दादण ४. ) | यशशाला ( विशेषषर-सोमादि यर्जो में ) में श्रन्य श्रनेक वेदियाँ पिनिर्मित होती ई जिनकी प्राय: सभी की श्याकृतियाँ होती हैं - उत्तर-त्रेदी ( जो सर्यप्रधान बेटी है ) एवं श्ाइवनीय श्रर्नि थी वेदिफा वी तो श्राति चनुरश्रा दे दी उ० वे० की 'नामिर एवं 'उसा” की भी चष्टी श्राकृति सोती श्रथच इन सभी नेस्थिक यों की वेदियों ( श्रारचनीप, एव एव नेमित्तिक ( सोमादि ) की वेदियों ( मद्दावेदी या तथा उस पर उत्तर-वेदी श्रादि ) की निर्मिति, श्राऊुति एव प्रयोलन सभी प्राठाद-निर्माण के लिये मूगाधार प्रदान करते ईैं। वैटिक परम्परा में वेदी प्रथिवी के प्रयुल विस्तार का प्रतीक है, यडीय व मेयर रेड की ते। चर झेत्रमात है । इसकी श्राकृति वदलनी रटती ई । सीमित वा यह मात्र दे न कि निश्चित श्राकृति । श घ्ा० ( सप्तम -१-२७ ) का प्रवचन फि- वेद पृथ्वी है शोर न्तर्वेदी यो.--फितना संगत दे | हिन्दू प्रासाद की प्रृप्ट-भूमि में यह वेदिफी चनुरश्ना चेदी हूं पायन झुब्र प्रदान बारह दे। ्रथियी का चदुल रूप तिंरदित ऐकर थी. की पू्ता में परिगतत हो जाता है । ध्रतएय; उसी पूणता के प्रतीक्त्य मे उस चतुरभा परिकल्पित पिया जाता है । चतुस्थ्रा बेदी एप चर्तुला प्रथियी का श्न्योन्य तादाह्म्य इसी सर्म का प्रतिप।टक | द्रपच यागोपलाकशिक एवं प्रासाद वास्तुक पुन नाना प'्रापरिं में परिवर्तित टोता ईै। यद परिणितिं एक्माव वास्तु शात्रीय परम्पस सी नारी जिएंगे एस से लगाफर ३२ तक (दे० मानसार ) के चास्तुदों की नानाजृति-निर्निति प्रत्तिपादित सूख साहित्य ( दे० वीघारन शल्वनयूध धघ्रादि 3 में भी यह परस्पर पित पर जुरी थी । प्रत्त॒, रस सम्बन्ध में कपन पप्रासाद-दात्त--जन्स एयं दिवस! नामक फे श्प्पाय में शिया जायेगा, परन्त सदिक ये दिनस्वनो के प्रतिपादक घाल्यसूयों (सो कल्प-पूर्पों फे हो श्ययान्तर पुर हैं ) में चर्पित नाना ( ऐप्स यश वे दि ) पर ऊछ पिशेष रेत यहां प्रायइपक है । या० श्राचायं ( देन से ८. प. 2 9 63 3 उाफ ही लिफते ई :-- प&८ 0 एलहट पा, १५101 घट धर पट ध0फ्र2-5101106. इट्टाए5 10 1 एप 9 93९९४ 00 वाएँ भूत फाप995 चिट फाट्प्पाइएा (है ९1 0४८०७० ८ 0६ पिएं ४1. (010




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