परम अध्यातम मार्तंड | Param Adhyatma Martand

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Param Adhyatma Martand by बाबूलाल शास्त्री - Babulal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 है शवयारय-नये जो प्रतिफलननिमग्वानतमायस्पसाति प्रेहिपिस्पस्समे सिमग्न अनत सायात्मर स्पमायों के द्वारा स्वत खुद अथवा सन्यत दूसरे के द्वारा मदनिनान- मूलाम भेटविज्ञानमधान अनुमुर्ति अलुभूतिको हिं निश्वयमे फथमपि किसी भी प्रसार सचलमू अचलस्प से लभन्ते माप्त करते हैं । ि ये एय हो सतत निरतर गुकुरगद दुषण के समान अपिकारा निर्दिकार म्यु दे हैं ॥ १॥ मालिनों त्यजतु जगदिदानीं मोहमाजन्मलीद । रसयतु रतिकाना रोचन ज्ञानमुद्यद्‌ ॥ इह कयमपि नाताउनातना साकमेकः क्लि कलयति काले कापि तादास्ययत्तिम ॥२२ न्वयाय- ददार्नी इस समय जगत जगत झाजन्म- लीन जमसे लगे हुण मोदमु मोहको त्यजतु छोड रसिकाना रसिक जनों के रोचन दचिरर मुधदु उदीय मान्‌ शान ज्ञानसा रसयहु आस्वाइन करें इद्मारमा यह शर्मा ससारमे झनास्मना अनात्माके साफमू साथ कथमपि रिसी भी तर से एक एक न नहीं दो सकता किलो किन्दु करापि किसी भा झालें समय तादारम्य-




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