आवश्यक मार्तण्ड | Aavashyak Martanda

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Aavashyak Martanda by बाबूलाल शास्त्री - Babulal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ২ ) उत्तर- सुनो आप अभी जेनधमं के उपासक हो यह हम सममः गये । परन्तु जनधमं को समभे नहीं । परम्परागत जो जैनघर्म चला आ रहा है उसे में आपको सिद्धान्तों द्वारा लिखा हुआ ठोक तरह से सममाऊ गा । हमारे यहां थोड़े दिनों से इस जनथम में कालदोष के निमित्त से दो टुकड़े हो गये हैं १ दिगम्बर २ श्वेताम्बर । भगवान मद्रवाह आचायं महाराज फे समय से विक्रम सम्बत १३६ से इसका लेख आचाय देवसेन करत भाव संग्रह नामक ग्रन्थों में भी है ओर स्वामी भद्गवाह चरित्र में भो है तथा आचाय इन्द्रनन्दीकृत नीतिसार नासा ग्रन्थ में भीं है वहां से देखकर अच्छी तरह से आप अपनी दिल की शंका बह कर सकते हैं, आपका सशय निकल जावेगा यनि दर हो जावेगा । जसे पहिले यह जनधम दिगम्बर नाम से नहीं पुकारा जाता था। इसका नाम था, ज्षपणक बम । श्वेनाम्बर होने से এই धर्म दिगम्बर कहलाने लग।। मुन्ो इस दिगम्बर जनधम में भी फिर टुकड़े होते ही रहे, जिनका नामोल्लेग यहां थोड़े से रूप में कराए देता हूं । शेष देखना हो ता उपरोक्त थ देख । १ संघ का লাল मृलसंघ, २ स्वका नाम द्राविडसंघ, ३ संघ का नाम यापनीय सघ, ४ संघ का नाम माथुर संघ, ४संघ का नाम काष्ठासंब, & संघ का नाम जामलीय संघ, ७संघ का नाम इस प्रकार इस धसं में चालनी न्यायकर बह द्हो गये, उन संघो की अलग अल्ञग प्रवत्ति रही | बाहर से तो जेनवर्मी कहलाना परन्तु आयरणों में शिथिला- चारी जनं । कहलने तो लग मुनि, पच पापां के संया त्यागी




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