वैदिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति | Vaidik Dharm & Bhartiya Sanskriti
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.42 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ अर्थात् परलोक में माता - पिता स्त्री - पुत्र - सम्बन्धी कोई भी सहायक नहीं हो सकता यदि कोई साथ देता भी है वो केवल धर्म ही अकेला ही प्राणी उत्पन्न होता है और अकेला दी नाश को प्राप्त होता है तथा अकेला ही अपने सत्कर्मों तथा दुष्कर्म के फल का उपभोग करता है | बेदिक धर्म इस नियम द्वारा सबको सावधान करता है और बुरे कर्मों से दृटाकर सस्कर्मों की झोर प्रेरित करता है यही इसकी तीसरी विशेषता है | ४ वेदिक धम की चौथी विशेषता यह है कि यह जन्म से लेकर गृत्यु पयन्त मनुष्य जन्म का पूरा प्रोग्राम उप- स्थित करता है और वह है आश्रम - घर्से यानी प्रथम २५ चघे तक त्रह्मचयेपूवक चिद्याध्ययन तथा कठिन तपस्या करते हुए शारीरिक शात्मिक विकास प्राप्त करना पुनः विवाह करके पच्चीस बषे पयन्त शुभ कसे करते हुए तथा उत्तम सन्तानो- त्पत्ति द्वारा देव-ऋण ऋषि-ऋण तथा पिठ-ऋण से उच्छण होने का प्रयत्न करना इसके पश्चात्त २४ बप तक वान- प्रस्थाश्रम धारण करके तपोमय जीवन व्यतीत करना तथा गृहस्थ में खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त करते हुए देश के बच्चों को शिक्षा के भूषण से भूषित करना । जीवन के अन्तिम साग में संन्यासी वनकर अयं निज्ञः परोवेति अर्थात् यह अपना है यह पराया है इस भाव को छोड़कर संसार के लाभ तथा उपकार सें अपना जीवन लगा देना ऐसा क्रमबद्ध प्रोघाम जिसके द्वारा मनुष्य क्रमशः उन्नति के माग॑ पर आरूढ़ होता जाय और अपने अन्तिम उद्देश्य को प्राप्त करले वंदिक घर में ही है |
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