भोजपुरी लोकसाहित्य का अध्ययन | Bhojpuri Lok Sahitya Ka Adhyayan
श्रेणी : भारत / India, सभ्यता एवं संस्कृति / Cultural
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.34 MB
कुल पष्ठ :
465
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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झाइप्ट हो जाते है । इन्हाने 'कुवर सिंह के सबध में एव नाटय यो भी रघना की हैजो
दीघ् ही प्राशित होने वाला है।
भोजपुरी वे उदीयमान व बिया में श्री माती दो ए यदूत प्रसिद्ध तया लादप्रिय हूं ।
इतवा जन्म १ श्रगस्त सन १६१९ ई० में दवरिया जि मे वरंजी सामय गांव में हुभा था 2
इन्हाने एम ए तव शिक्षा प्राप्त वी है तथा श्राजकल श्रीइप्थ इन्टर कातेज, बरहज में
इतिहास तथा श्रग्रेजी के प्राध्पापव हूँ। श्री मोती वी ए या पविता पढ़ते वा ढंग बडा
ही मधुर है । झनेव फिल्मा में उन्होने गीतवार वा वाय दिया है। नदिया ये पार' पे
सम्पूर्ण गीता थी रचना इन्हाने वी है। इनकी बयिताया या राग्रह महूवा बारी के नाम से
इताहायाद से अभी हा में ही प्रवादशित हुआ है । प्रणयी जी वी भांति ग्रामीण प्रद्ति श्रौर
जीवन वा चिप्रण इन्होंने वडी मारभिकता से पिया है। महूवा वा यह वर्णन बितना
सुन्दर है-- दी
“प्रइसन नसा झावलसि कि गदायें लगलि पुलुई
पोरे-्पारे मधु से मराये लागलि गुरुई।
महभ्ना भइसन ले रंगरइसें,
जरी पुलुई ले वाचइले,
लागल डाढ़ी-डाडी डोलिया बहार, राजनी 1
झसों झाइल महूवा चारी में, वहार सजनी 11
प्रामीण जीवन का यह चित्रण देखिये
“सइयाँ सातिर वारी धनियाँ महश्नरि पकावेली ।
कह बनिहारे खातिर तावा पर ततावेली ॥
महुप्ना बत प्रेम से सावें,
गाड़ी खीचें, जोत बनावें ।”
ई गरीववन वे विसमिस, श्रनार सजनी ।
सो भ्राइल महूवा बारी में बहार सजनी ॥।
प० चन्द्र देखर मिश्र का भीजपुरी के तरुण वधियों में एक विशिष्ट स्थान है। झापवा
जन्म मिर्जापुर जिले में हुभा है । श्राजकल श्राप काशी के “सनमाग' नामक दैनिक समाचार
पथ के साहित्यिक सम्पादक हैं । मिश्र जी ने गाँवो में घूम घूमवर भोजपुरी वे' वई हजार
लोव-गीतो का संकलन किया है जो शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। मिथ जी की क्वितात्रो
में सरसता तथा मधुरता विशेष रूप से पाई जाती है। दाब्दो का चयन भी इनका बड़ा
सुन्दर है । श्राशा है श्राप झपनी सरम भोजपुरी कविताओं का संकलन प्रकाशित कर
शपनी मातुमापा के भण्डार को भरने की कृपा करेंगे ।
श्री राहगीर जी देवरिया जिले के निवासी हैं तथा झाजवल नागरी प्रचारिणी सभा,
काशी में कार्य वर रहे हैं। राहगीर जी मैं व्यवितत्त्व से सरसता टपक्सी है। इनकी बबिता
में मघुर्ता तथा कोमसता उपलब्ध होती है । बबि-सम्मेलनना में राहगीर जी श्रपने
'कथिता-पाठ से समा वाँध देते हैं । इनवी कविताओं थप सप्रह भ्रभी तक प्रवाशित
हुआ है। इन्होंने भोजपुरी के गीत श्रौर गीतवार' नामव पुस्तक दी कम रन
क लिखी में
के भ्नेंक युवक बनियों को कविताएँ सवलित हैं । खी है जिसमें भोगपुरी
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