ब्रजलोक साहित्य का अध्ययन | Braj Lok Sahitya Ka Adhyayan

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Braj Lok Sahitya Ka Adhyayan by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-प्रवैश ] १५ लोक-कहानी-लोक-कथाओं के तीसरे बग के सम्बन्ध में विशेष इतना ही कहा जा सकता है कि वे कथायें जो उपरोक्त दोनों विभागों की कथाओं से भिन्न हैं और उनसे अतिरिक्त हैं, वे ही साधा- रण कहानी कहलाती हैं। साधारण लोक-कहानी को भी केचल मनोरञ्ञन की सामग्री मानना सम्भवतः पूर्णतः वैज्ञानिक नहीं होगा। निश्चय ही उनमें से अधिकांश केवल वात कह कर मन बहलाने के लिए ही हैं, किन्तु सभी कहानियाँ मनोरख्नन के लिए नहीं मानी जा सकती । अगरेजी में कहानियों का जो प्रकार फेवल ( 7७010 ) कहलाता है और अपने यहाँ जिसे तन्त्राख्यान या पशु- पक्षियों की कहानियाँ कह सकते हैं वह तो विशेषतः शिक्षा के लिए ही उपयोग में आता रहा है । ला फोण्टेन! ने स्पष्ट कह दिया है कि-- (णाच उण ৪009 876 2106 110 9295 ४00007, 097 20072017568 ४76 0166 99 5001) 810781] 066४ ए० एकएए 90 87008, एफ ৮৮৪ 01001 पाए 70 0 9168, णत्‌ 80 201005900 7 017) डाक्टर जानसन ने 'लाइफ आँव गे? में यह परिभाषा दी दै- ४ 8 [90168 07 ७9008 08 8९९७708 $0 76 70 168 01001- 716 560 9 78.72.756 77 ছ210) 0011008 11700702001] 600 80108910195 10001707060 (27060765 100 प्प) 207 62126010 16740), 276) {07 6 9ए709056 01 20078] 10506006100) 1010090. 60 206 2100. 5080 फा पाठ 116768४8 0100. [09910005,2 भारत में यह अत्यन्त प्रसिद्ध ही है कि पद्नतन्त्र की कहानियाँ राजकुमारों को राजनीति सिखाने के लिए कही गयी थी। ये राज- कुमार पढने में मन नहीं लगाते थे, तमी उन्हें ऐसी कहानियों द्वारा ही शिक्षा दी गयी । इन तन्‍्त्राख्यानों में पशु-पतक्तियों की कहानियाँ होती हैं और उन कहानियों के द्वारा किसी न किसी प्रकार की शिक्षा अवश्य मिलती हे । यहाँ भी यह बात ध्यान में रखने की है कि तन्व्राख्यान उन आदि आख्यानों से মিল ই जिनमें पशु-पत्तियों की कहानियाँ हैं, पर शौयं का विस्तृत वर्णन होता है, जो ऐतिहानिएः होते हूँ वे अ्रवदान “माके कहलाते हैँ । इ० २६२।




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