संसार का संक्षिप्त इतिहास भाग 1 | A Short History of the World

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A Short History of the World by एच. जी. वेल्स - H. G. Wellsमदनगोपाल - Madangopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 ्ाकाशान्तगंत प्रथ्वी हमारे जगत्‌ की कहानी--पुराइत्त--के लोग अभी तंक्र टीक-ठीक नहीं जान पायें हैं । दो सी चर पव॑ तक तो मनुष्यों के केवल तीन सहस्र वर्षों से कुछ अधिक का ही इतिहास ज्ञात था. और उससे पहले की कथा का झाघार थीं पुराण-कथाय और काल्पनिक विचार | ई० पू० ४००४ में जगत्‌ की सहसा सृष्टि हो गई इसके तो सम्य संसार का अधिकांश भाग मानता ही था घर ऐसी शिक्षा भी उस संमये दी जाती थी मतमेद इतना ही था कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय वसन्त-ऋतु थी या शिशिर | हिब_ बाइ- बिल की मूलपरदानुसार ब्यास्या पर अधिक बल देने ओर उसके सम्बन्ध में धर्मशास्त्र की मनमानी घारणाओं के सत्य समकने के कारण ही सष्टि-उत्पत्ति सम्बन्धी इस प्रकार की व्षगणना करने का विलक्ण श्रम उत्पन्न हुआ था । इन विचारों को अब धर्माचार्य करी का त्याग चुके और यह संवसम्मत सिद्धांत है कि जिस विश्व में हम रहते हैं वह युग-युगान्तरों से आर संभवतः अनादिकाल से ऐसा ही चला आता है । दोनों छोरों पर दपंणयुक्त होने के कारण प्रतिविम्बों-दारा अनन्त प्रतीत होनेवाले कमरे की भाँति हमारी यह घारणा मिध्या भी हो सकती है। परन्तु विश्व का छः या सात हज्ञार वष का ही पुराना मानने का सिद्धान्त अब सर्वधा मिथ्या सिद्ध हो चुका है | इस समय सभी यह जानते हैं कि पिरडाकार प्रश्वी नारंगी की भाँति दोनों छोरों पर चिपटी है और उसका व्यास ८ ००० मील का है | इसकी पिरडाकृति का ज्ञान तो थोड़े बुद्धिमानों के २ ५०० वर्ष पूर्व भी था परन्तु उससे पहले यह चिपटी-चौर्स॑ ही समभकी जाती थी | प्रथ्वी झाकाश मह तथा तारकाओं-संबंधी तत्कालीन विचार और धारणासें रब अत्यन्त असंगत प्रतीत होती हैं । हम जानते हैं कि प्रथ्वी ऋपनी घुरी पर (जो विषुवत रेखा में देकर गुज़रनेवाले व्यास से लगभग २४ मील छोटी है) घूमकर र४ घरणरे में एक परिक्रमा पूण करती है और उसी के कारण दिन रात होते हैं । सूर्य की परिक्रमा प्रथ्वी कुछ एक परिवर्तन-शील अण्डाकृति मार्ग-द्वारा एक व में समास करती है । सूर्य के




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