बौद्धधर्म और बिहार | Bauddhdharm and Bihar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.52 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक्यन श्र जिनके सहारे ममबान् बुद्ध सपने. भर्मचकत को निरन्तर चत्तातें रहते बे--पे केचिड्ससा चौद्धदर्शन के सुख्य विपय वीन हैं-डुग्ख प्रती यससुत्याद ( चसिकसाद ) हर झनात्म । है दुःख --के सम्बन्ध में लौदपर्म वाले वितरण में शिखा था चुका है और बतलाया गया है कि सांसारिक सारे पदार्थ और शरीर के सारे घर दुम्ख-समुदय हें । इनकी सम्पूर्गा सृष्याख्रों का छेदन दी निवाश है जो सानवसात्र के शिए. साब्य है। इसी सिद्धान्त के प्रतिषादन में ही लौड-दरान को विकास हुआ है। मगवात हुद ने सकल धर्मों के उन्छेव के लिए दो प्रतत्यससुलाद ( क्षतिकवाद ) और झनात्मवाद का सिद्धान्त ्रविष्कृत किया । प्रतीर्पसमुलाद ही एक ऐसा सिद्धान्त है जो सगंत्रानें बुद्ध का एकसाप सोलिक सिद्धान्त कहा का सकता हैं । मगचान दुद्ध के घशिकपाद सर झनात्मवांद को मसले के लिए यह जानना स्मावश्यक है कि उन्होंने अपने दर्शन के प्रतिपादन में स्कन्थ कगावतन सौर चातु--इन तीन भागों में नसवों का बिमसांजन किया हैं। साख्यकार कपिल ने जिस तरह २४ सस्वों को सासा हैं उसी तरह बुद्ध नें ३६ तस्ते शिनाये हैं जो निर्वाण को छोड़कर इश. होतें हैं । (क) स्कन्घ--स्कस्थ के सम्बन्ध में यद लिखा गया है कि रूप लेदना संकां संस्कार और विज्ञान -मे पेंचोपादान रकन्ब कहलाते हैं । इनमें क्राक्षाण को छोड़कर चार मददासूत ही रूप कहलातें हैं। सुख-चुगख श्ादि के श्नुमन का लाम कैदसा है। संज्ञा प्मिवान को कहते हैं। मन पर जिस डिसी चीत की छाप ( वासना ) रव जाती है उसे संस्कार कहा जाता है । इसी तरह चेठना ( संख्य के महत् ) को जद्ध किशन कहतें हैं । जीद्व-दशन का कहना है कि रुप ( चतुर्मदानूतं ) के सम्पक से पिज्ञान की विसिन्न स्थितियाँ थी बेदना संशा और संस्कार हैं। इस रहस्य को उदुभाटन करतें हुए सड्किसि निकाय का मदामेदस्लसुत्त कड़ता है कि संज्ञा वेदनां और विज्ञान--इन मीनों का न्यीन्साभय सम्बस्थ है था चाबुसो बेदना था च सम्सां में छ विः्शासं इसे घस्सां संसह्धां नो विसंसट्ा न च लब्मां इमेस घम्सानं विनिलुलिस्वा नाना करण पर्सायंतु । पुनः दीघनिकाय इन पंचस्कन्पों के सम्बन्ध में कदता है कि ये सभी नित्य संस्कृत प्रतीस्थमसुताज्ञ ्ञयघर्मा र विनाश ( निरोध ) वर्मा हनन इति रूप इति रूपस्स ससुदयों इति रूपर्स अयह्मो इति चेदना इति वेदनाप समु- दयो इति बेदइनाप अधक्षमों इति ससना इति सन्लाय ससुदर्यो इुति सन्याव ऋंवव्मो इुति प.. मम्सिम निकास है सह इस्थिपदोंममत्तत ₹.. सुखप्रुतिरं विकुतिमंददासा पक्रतपा सतत । पॉइहरूस्तु विकारों न प्रकृतिने जिकृतिप उुशपः 1 --संख्यितासद्ीमुरी
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