भक्ति अंक और भक्ति भावना | Bhakti Ank Aur Bhakti Bhavna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.9 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऊ रामका भजन फ्यों भर्दी करते # पु भोग और सुख भी भगवनुध्रपर्थ उन्दीरे -सर्पाण कर देने प्यादिये | यो करनेपर परमात्माडे नरमारविन्दर्मि अनुराग उत्पच् दोठा दे । धीमगवानके चरणारविन्दोमि रति होनेपर-- तस्माद गुर प्रपपेत थिजञासु श्रेय उत्तममू 1 इप्दे परे अ निप्पर्त प्ह्मण्युपसमाधयम ह भेदस्प म्दुदप्न एवं परम निप्मात गुरुके चरणारविस्दों- में ैठफर आत्मभेयका भगभ करे । भागयवपमोदा भवण सस्वन्त भक्तिमे करता हुआा। अमायासे गुरुझी सेवा रठा हुआ मनको सांसारिक पुष्प सप्रसे बचाते हुए आर्मनिष्ठ सापु पुषपोछि सत्सह्ममें रगाना चादिये । छतैः दानैः दया मिश्रता। शौच) तप सितिा+ स्वाष्याय) ज्ह्मचर्ष अर्िंगा एस सत्पका अम्पास करता हुमा हवंप्राणिमाज सात्मदर्शनष्प अम्यास करे | साथ दी एक्रान्त सेवन सया योड़ेसे निर्याद्र करनेफा अम्याम करता हुआ अद्वेत भाग निशकी और प्रगति करे । इस प्रहार भगवत्-प्रेमोत्यित भक्तिसे भागबतबमोंदा भयण करता हुमा नार्पज परायण पुदुप अनायास ही मायासे पार दो सुपता दे । माया-प्रपश्वसे पार इोफर झपने स्परूपर्म अवस्थित होना दी परम पुशुपार्ष दे | पुरुष ्वतुप्टयकी ऋमिक प्राप्ति करते हुए पुनापुनः अननी-स्ठणनस दग्थ न दोनेझ उपाप भक्ति दे । इठ मक्ति-तका पान करता हुआ-- साझी .. नित्पा.. फ्रयगात्मा . दिव्धिडइस नम एकतान प्रत्यय शोने सगना ही भक्तिकी चरम शौमा दै । भतप्व-- मोझरुररणसामप्रपी. सख्रिव.. परीयसी 1 -भर्याद् मोपकी कारण साममीम भक्तिझो सर्वप्रपम स्पान दिया गया दे ) बा भक्ति कोन-री दे इसके उत्तरमें-- श्बस्परूपानुसंधाग सक्तिरित्पमिधीयते | -नअपने स्यरूपका अनुसंधान ( सोज ) दी भक्ति दे यद भौशंकरानार्यजीका दिण्डिमपोप है । इसीकों भऊछोग स्पग्रभक्ति कहते हैं । देवादिपिपयक भक्ति अपया भक्ति है। मच अपय भक्ति भी झधिफारीकी अपेकास अपना स्पान उच्य दी रम्वठी दै। फिर भी बुछ का्टम देवारापनसे शुद्ध- म्वान्त होफर परा-भक्ति --म्वस्ूपानुसंपानकी और अवश्य आना दोगा | ससूपावगसि ही अन्ततोगस्वा स्भक्ति का चरम कल है । इसीछिये येदम नाम्य। पन्या बिद्यतेश्यनाय ( भपनाय मोझाय शम्पः पस्या। रद रूपामुर्सभानातिरिक्त न दिखते )--प कद गया है। मोधके सिये स्वसूपानुसंभान- रूप भक्ति ही एकमात्र मार्ग है । इस प्रकार एद्सि उत्ववेता सर्मत्र सास्मदर्शन करता है। उसे मैंसेरा) तू सौर तेरा कई नहीं दीखता । गइ सर्दप्र आर्मदर्शन करता हे । अवपप भगगान शंकराष्वा्यनि देवी विप्णु+ गह्दा मादिफे शुम्दर स्तोजोमि एकत्म-प्रत्यम- निश्नका दी गान किया हे । थे आात्मातिरिक्त किसी भी देवता अपता चराचर पदाोंमि प्रस्यय नहीं ऋरते ये । सर्वध आारम- दर्शन दी समझी एडतान निथा थी | गद्दी भक्तिका फरम- प्रयोवन दे और इसीसे जीबनकी सार्पफठा दे । नर्स उस् 2 नागा रामका मजन क्यों नहीं करते भीकी मठि छेद मनी की मति छेद्द मति ्सेमापति बेस कद पान खयेत है। करम करम करि फरम न कर कर्म स कर मूढ़ सीस भयो सेत है ॥ श्यये थनि सतन ज्यी रहे वनि सतनन पुन के चनिश तन मन किन देव दे। आपस दियम बैस यीती भभियम सात कर दिसराम मजि शागे किन लेत दे ॥ पाप- -मशकबि प्टेनापति
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