वेदान्त-धर्म | Vedant-Dharma

Vedant-Dharma by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ 2) सस्कृत का छात्मा और घ्रम्नेज्ी का ग्णाधते शब्द बिल्कुल मिन्न भिन्न थर्य प्रफट करते हैं। हम लोग जिसे आत्मा क्या है मन कहते हैं पाश्चाद्य देश वाले उसे 5०घ1 कहते हैं। पाश्चाय देशों में आ्रात्मा फे सम्बस्ध में यथा ज्ञान किसी समय नहीं था | प्राय चीस चर्प हुए सस्कत्त दर्शन शास्त्रों की सद्दायता से यह श्ञान पाश्चाय देशों में माया है। हम लोगों का यह स्थूस शरीर है इसके पीछे मन है । लेकिन मन शात्मा नहीं है । व सुचम शरीर-सूच्म तन्मात्र से बना है । यद्दी जन्म जन्मान्तर में विभिन्न शरीर में साथय लेता है किम्तु इसके पीछे 58001 या मनुष्य की आत्मा है। यह आत्मा शब्द 30णा या पते शब्द के द्वारा नुवादित नहीं हो सकता । ।इसलिये हम लोगों को सस्कृत का ातंमा शब्द अथवा ाजकल के पाश्चाय दाशेनिकों के मताजुसार । 58 शब्द का ब्यवद्दार करना होगा । चाहे इम जिस शब्द (का व्यवदार फरें आत्मा-मन और स्थूल शरीर दोनों से प्रथफ ही है इस धारणा को मन के भीतर अच्छी तरह से रखना होगा । / गौर यदद श्मात्मा दी सन या सूचम शरीर को साथ लेकर एक . देह से दूसरी देह में जाता दै। जिस समय बह सर्वज्ञत्व झौर इएस्च प्राप्त करता है उस समय उसका जन्म सृत्यु नहीं होता । उस समय वद्द स्वाधीन हो जाता है । अगर बदद चाहे तो मन या द्रम शरीर को साथ रख सकता हे अथया उसे टांग फरके के हमनन्त काल के लिये स्वाधीन श्वौर सुक्त हो सकता है । स्वाघी-




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