सूरदास | Surdas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.79 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रजेश्वर वर्मा - Brajeshwar Varma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्ाविभावि हद चिस-चृत्तियों को हमेणा क्यों दबाए रहे ? या उन्हें दबाए रखना सभब मी है ? बल्समाषार्य कदाचित यह मानते थे कि मह समव नहीं है इसलिए सर्वमाव से भात्म-समप्रण हो तभी पूरा होगा जब मन भोर इद्ियों की सभी बृत्तियो को भगवान को समपिप्त कर दिया जाए । इस समपष के याद रस रूप राग गंप भौर स्पर्स के सांसारिक प्ाकपण नहीं सताठ क्योंकि इन सब की तृप्ति परम भानद रूप भगवान श्रीकृष्ण की सीसा में हो भावी है । उसी सीसा का मर्म सममाने के सिए भाचाय थी ने सूरदास को दीक्षा दी थी । फलस्वरूप कवि भीर मगत सूरदास का नए रूप में भाविमावि हुपा था । मूरदास के ीवम में उनके इस भाविर्माव को घटना सबसे भषिक महत्त्व की है । इसके भागे उनके भम बात्यकाल भादि की घटनाएं मुझा दो गई है । इसको चिस्ता ही नहीं की गई दि वे कब भौर कहाँ पैदा हुए और किस प्रकार उनका भारमिक जीवन यीता । पिर भी फुछ बातें थोड़ी गई हैं प्रौर धारमिक जीवनी बनाने का यह्न किया गया है 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...