बीता युग नई याद | Beeta Yug Nai Yaad

Beeta Yug Nai Yaad by सीताराम सेकसरिया - Sitaram Sekasariya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधीजी के प्रथम दर्शन काग्रेस छोड दी। उनका तो विरोब होना ही था । समर्थन मे कान मोत्तीलालजी और अली-वन्धु थे। जहातक मुझे यद्दे-है -केतार्थी में प्रस्ताव के पक्ष मे कोई नहीं वोला पर प्रस्ताव बडे बहुमत से स्वीकार किया गया । चार महीने वाद नागपुर-काग्रेस मे यह प्रस्ताव जो कलकत्ता की विशेष काग्रेंस मे स्वीकृत हुआ था सारे नेताओ के समर्थन के साथ एक प्रकार से सबंसम्मत रूप से पास हो गया। इस प्रकार सन्‌ १९२० के दिसम्बर में देन ने सर्वमान्य नेता के रूप में गाघीजी को स्वीकार कर लिया और काग्रेस पूर्ण रूप से गाधी- जी की सलाह से चलने लगी । सन्‌ १९१४ में गाबीजी भारत में आये थे । सन्‌ १६२० मे वह काग्रेस के सर्वोच्च श्रद्धेय नेता स्वीकार कर लिये गए गौर महात्मा के नाम से पुकारे जाने लगे । तबमे सन्‌ १६४७ तक स्वा- धीनता प्राप्ति का इतिहास गाघी-युग का इतिहास है जो महान अनोखा एव प्राणवान तो है ही विदव के स्वाघीनता-इतिहास में भी एक नया अध्याय जोड़ता है । बुद्द और ईसा जैसे महापुरुपो ने अहिसा के प्रभाव पर काफी जोर दिया पर अहिसक प्रतिकार की वात गाधीजी ने बतायी और उसको सासूहिक रूप दिया। उसका अनेक क्षेत्रो मे अनेक वार प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की । सबसे बडी वात यह है कि जिसका उन्होने प्रतिकार किया उसका भी प्रेम वह प्राप्त कर सके । यह उनके जीवन की महान सफलता और चरम साधना है। राजनतिक उपलब्धियों से भी बहुत वडा वहुत सच्चा वहुत निर्मल और बहुत उदार रूप उनकी जीवन-साधना का है। उनके व्यक्तित्व की उनके व्यवहार की और सम्बन्धो की छाप अनेकों के हृदयो मे अकित है । साघाजी के सम्पर्क का ज़रा-सा स्पर्ण जो भावना जो सस्कार दे गधा वह आगे कभी मिटा नहीं । जिसे वह सत्य मानते थे उसे करने की उनमें अचूक श्रद्धा मौर हिम्मत थी । शायद १९२८ की वात है। एक वार घनदयामदासजी बिडला ने उनसे पूछा कि आपके अनेक कामों में कौन-सा ऐसा काम है जिसे आप वडा काम मानते हैं ? उन्होंने कहा मै तो बडा- छोटा सोचता नही जो काम ईव्वर मुक्तमे कराता है दह् करता हू




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